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Chhath Puja पर राहुल गांधी के तंज से उठा सियासी तूफ़ान, छठी मैया का अपमान के खिलाफ मोदी-शाह ने भरी हुँकार

बिहार की राजनीति में राहुल गांधी ने एक बार फिर वही गलती दोहरा दी है जो वह पहले भी कर चुके हैं। यह गलती है जनता की आस्था को ‘ड्रामा’ बताने की गलती। हैरानी की बात यह है कि राहुल गांधी की इस प्रकार की हर गलती का बड़ा खामियाजा कांग्रेस को हर बार भुगतना पड़ता है लेकिन राहुल फिर भी नहीं सबक लेते। छठ पूजा, पर राहुल गांधी का तंज न केवल राजनीतिक भूल थी, बल्कि चुनावी मायने में आत्मघाती भी थी। दिल्ली के यमुना तट पर छठ आयोजन का हवाला देते हुए जब राहुल ने कहा कि “प्रधानमंत्री छठ पूजा के बहाने ड्रामा करते हैं,” तो यह तीर सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर नहीं, बल्कि उन करोड़ों माताओं-बहनों के दिल पर लगा, जो साल दर साल निर्जला व्रत रखकर सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा करती हैं।
राहुल गांधी का यह बयान भाजपा के लिए जैसे राजनीतिक वरदान बन गया। मुजफ्फरपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी को मुद्दा बनाते हुए महागठबंधन पर जोरदार हमला बोला। मोदी ने कहा, “जब आपका बेटा छठी मैया की जय-जयकार दुनिया में करा रहा है, तब ये कांग्रेस और आरजेडी वाले उसी छठी मैया का अपमान कर रहे हैं। क्या बिहार की माताएं-बहनें इसे बर्दाश्त करेंगी?”

देखा जाये तो प्रधानमंत्री का यह भाषण केवल राजनीतिक जवाब नहीं था, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक चेतना से जुड़ी भावनाओं को सीधे छूने वाला था। वहीं राहुल गांधी ने मोदी की छवि पर चोट करने के प्रयास में खुद बिहार की आस्था को निशाना बना दिया। यह वही चूक है, जो बिहार की राजनीति में घातक साबित होती है— क्योंकि यहाँ छठ केवल एक पर्व नहीं, आस्था का उत्सव है।
इस मुद्दे पर को और सियासी धार देते हुए लखीसराय की रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “राहुल बाबा प्रधानमंत्री का अपमान करते-करते छठी मैया का भी अपमान कर बैठे। इतिहास गवाह है— जब-जब कांग्रेस ने मोदी के लिए अपशब्द बोले, तब-तब उसका सूपड़ा साफ हुआ।” देखा जाये तो अमित शाह का यह बयान न केवल चेतावनी थी, बल्कि बीजेपी की चुनावी रणनीति का स्पष्ट संकेत थी कि “आस्था के खिलाफ कोई नहीं टिकेगा।”
देखा जाये तो बिहार की सियासत में यह नया मोड़ भाजपा को वह नैरेटिव दे रहा है जिसकी उसे तलाश थी— ‘आस्था बनाम अहंकार’। एक तरफ मोदी छठ को “जनश्रद्धा का गौरव” बताकर खुद को बिहार की संस्कृति से जोड़ रहे हैं, वहीं राहुल गांधी का बयान उन्हें “आस्था विरोधी” खेमे में खड़ा कर रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति में शब्द तीर बनते हैं और राहुल गांधी का यह तीर इस बार अपने ही पाले में गिर गया है। बिहार के जनमानस में छठ पूजा धर्म से अधिक भावनात्मक पहचान है— इसे अपमानित करना सिर्फ राजनीतिक गलती नहीं, बल्कि सांस्कृतिक असंवेदनशीलता है।
बहरहाल, अब सवाल यह नहीं कि किसने क्या कहा, सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी ने अपनी राजनीति के अहंकार में बिहार की आस्था की रेखा पार कर दी है? और अगर ऐसा है, तो आने वाले दिनों में छठी मैया की कृपा किस पर बरसेगी— यह तय करने की ताक़त अब बिहार के जन-मन के हाथों में है।

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