कुआलालंपुर में इस समय एशिया के प्रमुख नेताओं की बैठक का माहौल है, जहां 47वें आसियान सम्मेलन और 22वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा हैं। लेकिन इस बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैरमौजूदगी विशेष ध्यान खींच रहा हैं। बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी इस सम्मेलन को वर्चुअली संबोधित करेंगे, जो उनके लगातार सक्रिय विदेश नीति को देखते हुए एक असामान्य कदम माना जा रहा हैं।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, मोदी के वर्चुअल भाग लेने का फैसला सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी से जुड़ा माना जा रहा हैं। दोनों नेताओं की हालिया मुलाकातें तनावपूर्ण रही हैं, और उनके बीच व्यापार, ऊर्जा और रणनीतिक मुद्दों पर मतभेद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। गौरतलब है कि ट्रंप की अमेरिका-भारत नीति में तेल, व्यापार और रूस से आयात जैसे संवेदनशील मुद्दों पर कड़े रुख ने भारत को कूटनीतिक चुनौती में डाल दिया हैं।
बता दें कि मोदी का आसियान सम्मेलन में नियमित रूप से शामिल होना उनकी सक्रिय विदेश नीति का हिस्सा रहा हैं। 2014 के बाद से उन्होंने अधिकांश आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलनों में भाग लिया हैं, जिससे भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच व्यापार और रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई हैं। हालांकि इस बार वर्चुअल भागीदारी से भारत का संवाद मौजूद रहेगा, लेकिन व्यक्तिगत बातचीत और द्विपक्षीय बैठकें सीमित हो जाएंगी।
जानकारों का कहना हैं कि मोदी की अनुपस्थिति एक रणनीतिक कदम हैं। सीधे ट्रंप के सामने बैठने पर कोई अप्रत्याशित टिप्पणी या विवाद भारत की आर्थिक और ऊर्जा नीतियों को प्रभावित कर सकता हैं। इसी कारण मोदी ने वर्चुअल माध्यम को चुना हैं ताकि भारत की उपस्थिति बनी रहे लेकिन किसी भी कूटनीतिक झटके से बचा जा सके। गौरतलब हैं कि इससे भारत की लंबी अवधि की कूटनीतिक सक्रियता पर सवाल भी उठ सकते हैं, क्योंकि व्यक्तिगत संवाद अक्सर औपचारिक भाषणों से अधिक प्रभावी साबित होते हैं।
मौजूदा स्थिति यह भी दर्शाती हैं कि भारत-अमेरिका संबंधों में पहले जैसी स्थिरता और भरोसेमंद साझेदारी धीरे-धीरे मुश्किल होती जा रही हैं। मोदी की वर्चुअल उपस्थिति फिलहाल उन्हें किसी अप्रिय परिस्थिति से बचा रही हैं, लेकिन यह सवाल उठता हैं कि भारत कब अपनी रणनीतिक ताकत और संवाद कौशल के साथ ट्रंप जैसी शैली का सामना करने के लिए मैदान में उतरेगा। भारत के वैश्विक नेतृत्व और रणनीतिक हितों की दृष्टि से यह समय महत्वपूर्ण और संवेदनशील माना जा रहा हैं।