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Shaurya Path: China Rare Earth Minerals, India-US Relation और China-Taiwan संबंधी मुद्दों पर Robinder Sachdev से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने चीन और अमेरिका के बीच चल रही टैरिफ वार, अमेरिकी उपराष्ट्रपति की भारत यात्रा और ताइवान के पास देखी गयी चीनी परमाणु पनडुब्बी से जुड़े मुद्दों पर रक्षा और विदेश मामलों के जानेमाने विशेषज्ञ श्री रोबिन्दर सचदेव जी से बातचीत की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. चीन द्वारा रेयर अर्थ के निर्यात पर रोक लगाना अमेरिका के लिए झटका कैसे है और इसका शेष दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?
उत्तर- चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध के बढ़ने के साथ ही दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे पर लगाए जा रहे उच्च स्तर के टैरिफ से पूरी दुनिया परेशान है। लेकिन अब चीन ने अमेरिका पर जवाबी कार्रवाई के तहत कई महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी खनिजों और चुम्बकों पर निर्यात नियंत्रण लगा दिया है, जिससे अमेरिका को बड़ा झटका लगा है। उन्होंने कहा कि इस कदम से यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका इन खनिजों पर कितना निर्भर है। उन्होंने कहा कि दुर्लभ खनिज 17 रासायनिक रूप से समान तत्वों का एक समूह है जो कई उच्च तकनीक वाले उत्पादों के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए नियोडिमियम का उपयोग लाउडस्पीकर, कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, ईवी मोटर और जेट इंजन में उपयोग किए जाने वाले शक्तिशाली चुम्बकों को बनाने के लिए किया जाता है जो उन्हें छोटा और अधिक कुशल बनाते हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह यिट्रियम और यूरोपियम का उपयोग टेलीविज़न और कंप्यूटर स्क्रीन बनाने के लिए किया जाता है क्योंकि वे रंगों को प्रदर्शित करने में सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि आप जो कुछ भी चालू या बंद कर सकते हैं, वह संभवतः दुर्लभ खनिजों पर चलता है। उन्होंने कहा कि यह लेजर सर्जरी और एमआरआई स्कैन जैसी चिकित्सा प्रौद्योगिकी के साथ-साथ प्रमुख रक्षा प्रौद्योगिकियों के उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि चीन के पास दुर्लभ मृदाओं के साथ-साथ उन्हें परिष्कृत करने के लिए पर्याप्त संसाधन है और दुनिया में एक तरह से इन चीजों पर उसका एकाधिकार है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि दुर्लभ मृदा उत्पादन का लगभग 61% और उसके प्रसंस्करण का 92% हिस्सा चीन के पास है।

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प्रश्न-2. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नी उषा के साथ 21-24 अप्रैल तक भारत यात्रा पर रहेंगे। क्या आपको लगता है कि इस यात्रा से दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता की राह आसान होगी?
उत्तर- अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी पत्नी उषा 21 अप्रैल से भारत की चार दिवसीय यात्रा पर आएंगे। उन्होंने कहा कि इस दौरान वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वार्ता करेंगे, जिसमें प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को शीघ्र अंतिम रूप देने और भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जेडी वेंस राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शुल्क विवाद पर बढ़ती वैश्विक चिंताओं के बीच भारत की यात्रा पर आ रहे हैं और दोनों पक्ष प्रस्तावित व्यापार समझौते को मजबूत करने पर विचार-विमर्श कर सकते हैं जिसका उद्देश्य शुल्क, बाजार पहुंच और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित मुद्दों का समाधान करना है। उन्होंने कहा कि यह यात्रा दोनों पक्षों को द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति की समीक्षा करने और प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान 13 फरवरी को जारी भारत-अमेरिका संयुक्त वक्तव्य के परिणामों के कार्यान्वयन का अवसर प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष आपसी हित के क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रमों पर भी विचारों का आदान-प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि वेंस के कार्यालय ने भी कहा है कि वह 18 से 24 अप्रैल तक इटली और भारत की यात्रा पर जा रहे हैं और वह ‘‘प्रत्येक देश के नेताओं के साथ साझा आर्थिक और भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं पर चर्चा करेंगे।” उन्होंने कहा कि इस महीने पारस्परिक शुल्क लागू होने के कुछ दिन बाद, ट्रंप ने चीन को छोड़कर सभी देशों के लिए इस पर 90 दिनों की रोक की घोषणा की है इसलिए यह यात्रा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड की भारत यात्रा के कुछ सप्ताह बाद वेंस की यह यात्रा हो रही है। 
प्रश्न-3. चीन की न्यूक्लियर सबमेरीन ताइवान के पास देखी गयी है। क्या आपको लगता है कि आजकल हर जगह शांति की बात कर रहा ड्रैगन उस क्षेत्र में कोई बड़ी कार्रवाई करने जा रहा है?
उत्तर- हाल ही में गूगल मैप्स की तस्वीरों में क़िंगदाओ के पास चीन के परमाणु पनडुब्बी अड्डे के बारे में दिखाया गया है, जिसमें कम से कम छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ डॉक की गई हैं, जिससे इस क्षेत्र में बीजिंग के बढ़ते सैन्य खतरे के बारे में नई चिंताएँ पैदा हो गई हैं। उन्होंने कहा कि गूगल मैप्स से ली गई तस्वीरों में छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ दिखाई दे रही हैं, जो पीले सागर में क़िंगदाओ से लगभग 18 किमी पूर्व में तथाकथित फर्स्ट सबमरीन बेस पर तैनात हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थान पूर्वी चीन सागर और जापान सागर दोनों तक सीधी पहुँच प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के विश्लेषक एलेक्स लक ने तस्वीरें साझा कीं हैं जिन्होंने दो टाइप 091 पनडुब्बियों, दो टाइप 093A पनडुब्बियों और एक अज्ञात पोत की पहचान की है। उन्होंने कहा कि ताइवान के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय (MND) ने भी अपने हवाई क्षेत्र और जलक्षेत्र के आसपास चीनी सैन्य गतिविधि में तेज वृद्धि की सूचना दी, जो बीजिंग की ओर से दबाव के चल रहे पैटर्न को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि MND के अनुसार, सुबह 6 बजे (स्थानीय समय) तक द्वीप के आसपास पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के 34 विमान, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (PLAN) के छह नौसैनिक जहाज और दो आधिकारिक जहाज देखे गए। उन्होंने कहा कि ताइवान के नज़दीक चीन की सैन्य कार्रवाइयाँ लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिससे दबाव का एक स्पष्ट पैटर्न बन रहा है। उन्होंने कहा कि हालाँकि ताइवान 1949 से खुद ही शासन कर रहा है, लेकिन बीजिंग इसे चीन का हिस्सा मानता है। अपनी “एक चीन” नीति के तहत, चीन इस द्वीप पर अपना दावा करना जारी रखता है और इसे अपने नियंत्रण में लाने के लिए बल प्रयोग से इंकार नहीं करता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल ऐसा तो नहीं लगता कि चीन कोई सीधी कार्रवाई ताइवान पर करेगा परंतु यह भी हकीकत है कि ड्रैगन एक ना एक दिन ताइवान को नियंत्रण में लेने के लिए प्रभावी कार्रवाई करेगा ही।

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