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China में आ रहा नया राष्ट्रपति! BRICS में मोदी ने खेल दिया बड़ा मास्टरस्ट्रोक, जिनपिंग हाथ से सत्ता जाते देख रहे

चीन का वो नेता जिसे आजीवन सत्ता का प्रतीक माना गया, अब पीछे हटने की तैयारी कर रहा है। शी जिनपिंग जिनका नाम लेते ही एक तानाशाह और लोहे की मुट्ठी से राज करने वाला चेहरा ध्यान में आता है। आजकल खुद अपनी शक्ति बांट रहे हैं। ऐसे में चर्चा तेज हो चली है कि क्या चीन में राष्ट्रपति बदलने वाला है। क्या भारत के पड़ोसी देश की राजनीति में बड़ा बदलाव आने वाला है। 2012 यही वो साल था जब शी जिनपिंग ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के तौर पर सत्ता संभाली। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रपति और सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का अध्यक्ष बनकर देश की पूरी सत्ता पर कब्जा जमा लिया। लेकिन अब चीन में शी जिनपिंग को लेकर तरह तरह की खबरे सामने आ रही है। ऐसे वक्त में जब ब्रिक्स में नरेंद्र मोदी का दबदबा पूरी दुनिया ने महसूस किया। ब्रिक्स सम्मेलन में जितने भी देश के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में आतंकवाद की निंदा की और भारत का साथ दिया। आतंकवाद के खिलाफ जिस तरह जीरो टालरेंस की नीति भारत अपनाता है। वही नीति ब्रिक्स सम्मेलन में ये देश भी अपनाते नजर आए। इससे भी ज़्यादा उल्लेखनीय बात यह है कि 2012 में सत्ता संभालने के बाद यह पहली बार है जब शी ब्रिक्स मंच से अनुपस्थित रहेंगे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग ले रहे हैं। दरअसल, पीएम मोदी ने आतंकवाद का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान पर तीखा हमला किया और यह भी कहा कि यह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए कि कुछ लोग व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए आतंक के प्रसार के खिलाफ कुछ न कहें या कुछ न करें।

शी ने बैठक में भाग न लेने का फ़ैसला क्यों किया? 

क्या यह शेड्यूल से जुड़ी उलझन का मामला है जैसा कि चीन ने दावा किया है या यह आंतरिक दबाव है या उनकी घटती शक्ति का संकेत है? हम शी की अनुपस्थिति के संभावित कारणों का विश्लेषण करते हैं और यह भी कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए यह क्यों मायने रखता है। चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, शी जिनपिंग की बैठक में अनुपस्थिति 2012 के बाद पहली बार शेड्यूल संबंधी विवादों के कारण हुई है। हालांकि, 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीन की उपस्थिति नहीं है। शी जिनपिंग ने अपनी जगह अपने प्रधानमंत्री ली कियांग को बैठक के लिए भेजा है। लेकिन विश्लेषकों और विशेषज्ञों का मानना ​​है कि शी की अनुपस्थिति सिर्फ़ शेड्यूलिंग विवाद से कहीं ज़्यादा है। कुछ चीनी पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि शी चीन की आर्थिक चुनौतियों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए रियो डी जेनेरियो से दूर रह रहे हैं। एशियाई दिग्गज के औद्योगिक मुनाफे में मई में एक साल पहले की तुलना में 9.1 प्रतिशत की गिरावट आई, जो इस बात का संकेत है कि बीजिंग के प्रोत्साहन प्रयास उद्यमों की लाभप्रदता बढ़ाने में विफल हो रहे हैं। इसके अलावा, धीमी उपभोक्ता खर्च और रियल एस्टेट बाजार में मंदी ने चीन की अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अप्रत्याशित व्यापार युद्ध भी एशियाई राष्ट्र के लिए सिरदर्द है।

ब्रिक्स में शी की अनुपस्थिति क्यों मायने रखती है?

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शी की अनुपस्थिति महत्वपूर्ण है। इससे समूह का महत्व कम हो जाता है। इसके अलावा, शिखर सम्मेलन में भाग न लेने का शी का निर्णय वैश्विक दक्षिण देशों के बीच चीन के नेतृत्व को मजबूत करने और खुद को पश्चिमी प्रभाव के प्रतिकार के रूप में स्थापित करने का एक खोया हुआ अवसर भी है एक ऐसी छवि जिसे बीजिंग ने लंबे समय से विकसित किया है। इसके अलावा, समूह की स्थिति इस तथ्य से भी प्रभावित हो सकती है कि केवल शी ही नहीं बल्कि रूस के व्लादिमीर पुतिन भी बैठक में भाग नहीं ले रहे हैं। रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध के परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की गिरफ्तारी वारंट का सामना कर रहे हैं और हो सकता है कि उन्होंने शिखर सम्मेलन के मेजबानों को शर्मिंदा होने से बचाने के लिए रियो की यात्रा न करने का फैसला किया हो, जो ICC क़ानून पर हस्ताक्षरकर्ता हैं। 

ट्रंप की धमकी

लेकिन ब्रिक्स के नतीजे चाहे जो भी हों, अमेरिका इस पर कड़ी नज़र रख रहा है। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले ही ब्रिक्स समूह की अमेरिका विरोधी नीतियों से जुड़े देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है। ट्रम्प ने रविवार रात ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा कि ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों से जुड़ने वाले किसी भी देश पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा। इस नीति में कोई अपवाद नहीं होगा। इस मामले पर आपका ध्यान देने के लिए धन्यवाद!   

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