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बांस के डंडों से हॉकी खेलने वाले सोनामारा के खिलाड़ी अब खेलेंगे एस्ट्रो टर्फ पर

धूल धूसरित मैदान पर सुविधाओं के बिना भी पूरे जोश के साथ हॉकी खेलते बच्चे, आसपास की दीवारों पर पूर्व और मौजूदा हॉकी सितारों की तस्वीरें और चक दे इंडिया जैसे नारे। जिस गांव का नजारा ऐसा हो , उसे भारत का हॉकी गांव कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।
भारतीय हॉकी के गढ रहे ओडिशा के सुंदरगढ जिले के सोनामारा गांव में करीब दो हजार आदिवासी परिवार बसते हें। हर शाम यहां धूल से भरे मैदान पर करीब सौ बच्चों को हॉकी खेलते देखा जा सकता है। हॉकी उनके लिये खेल नहीं बल्कि जुनून है और उनके सपने भविष्य का दिलीप टिर्की या अमित रोहिदास बनने के हैं।

दुनिया के सबसे बड़े हॉकी मैदान राउरकेला के बिरसा मुंडा स्टेडियम से सौ किलोमीटर दूर स्थित इस गांव से भारत के पूर्व कप्तान और हॉकी इंडिया के मौजूदा अध्यक्ष दिलीप टिर्की के अलावा अमित रोहिदास, दिप्सन टिर्की और महिला टीम की पूर्व कप्तान सुभद्रा प्रधान निकले हैं।
बांस के डंडों से खेलकर हॉकी का ककहरा सीखने वाले ये बच्चे अब एस्ट्रो टर्फ पर खेल सकेंगे। भारतीय हॉकी को दिलीप टिर्की समेत कई बड़े सितारे देने वाले इस गांव में अगले महीने कृत्रिम पिच बिछ जायेगी।

भारत के लिये सर्वाधिक 421 अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके टिर्की ने कहा ,‘‘ जब मैं छोटा था तो मेरे गांव में हॉकी का कोई मैदान नहीं था। जहां जगह मिल जाती, हम खेल लेते। लेकिन अब मेरे गांव में एस्ट्रो टर्फ लगने जा रही है।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ मैं अपने गांव के बच्चों के लिये बहुत खुश हूं। मुझे भारतीय हॉकी में मेरे गांव के योगदान पर गर्व भी है।’’
यहां बिछने वाली कृत्रिम पिच रेत से भरी होगी जिसकी लागत कम आती है।

अंतरराष्ट्रीय मैचों की एस्ट्रो टर्फ पर करीब चार करोड़ रूपये लगते हैं लेकिन इसकी कीमत कम होती है।
ओडिशा सरकार ने सुंदरगढ जिले के सभी 17 ब्लॉक में कृत्रिम टर्फ बिछाने का काम शुरू कर दिया है।
सरकारी स्कूल के सातवीं कक्षा के छात्र अमन टिर्की ने कहा ,‘‘ हॉकी हमारी जिंदगी है। यह हमारे खून में है और हम रोज हॉकी खेलते हैं। मैं भी बड़ा होकर दिलीप टिर्की या अमित रोहिदास की तरह भारत के लिये खेलना चाहता हूं।

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