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दिल्ली जल विवाद पर अदालतें नहीं ले सकती फैसला, जानें हरियाणा सरकार ने ऐसा क्यों कहा?

हरियाणा सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि यमुना से आपूर्ति को लेकर दिल्ली और हरियाणा के बीच चल रहे जल विवाद पर अदालतें फैसला नहीं ले सकती हैं और दिल्ली सरकार को इस मामले को सुलझाने के लिए केंद्र या संबंधित नदी बोर्डों से संपर्क करना चाहिए। हरियाणा गर्मी के मौसम के मद्देनजर दिल्ली को स्वच्छ पानी की निर्बाध आपूर्ति और नदी से रेत खनन अवरोधों को हटाने के लिए दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) द्वारा दायर एक याचिका का विरोध कर रहा था।

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ये कहते हुए कि पानी के बंटवारे और आवंटन के संबंध में दिल्ली सरकार का विवाद कानून में कायम नहीं है, हरियाणा सरकार ने यह भी कहा कि दिल्ली सरकार या दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को ऊपरी यमुना नदी बोर्ड के साथ अतिरिक्त पानी की मांग को उठाना चाहिए। हरियाणा सरकार ने एक हलफनामे में कहा कि अंतर-राज्यीय नदी जल विवादों के मामले में न तो इस अदालत और न ही सर्वोच्च न्यायालय के पास ऐसे किसी भी जल विवाद पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र था, जो विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 262 के साथ पढ़े जाने वाले अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 11 द्वारा वर्जित है। 

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वकील एसबी त्रिपाठी द्वारा साफ पानी और बांधों को हटाने के लिए 2013 से लंबित याचिका में डीजेबी के आवेदन के जवाब में दस्तावेज दायर किया गया था। याचिका में कहा गया है कि हरियाणा मई 2019 में दिल्ली के हिस्से के पानी की आपूर्ति और अवैध रेत खनन पर नजर रखने के लिए अदालत द्वारा दिए गए पहले के निर्देशों का पालन करने में विफल रहा है।  

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