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Direct Action Day 1946 | डायरेक्ट एक्शन वाले दिन मुसलमानों को बांटा गया कौन सा पर्चा? | Matrubhoomi

राज्य की राजधानी कोलकाता से करीब 50 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल का नार्थ 24 परगना जिला जहां एक छोटा सा गांव है जिसका नाम चट्टालपाली है। 6 सितंबर 2010 को यहां जमीन के एक टुकड़े पर विवाद हुआ। एक ओर कब्रिस्तान और दूसरी ओर मंदिर था, जहां दुर्गा पूजा हुआ करती थी। दोनों को एक संकड़ा रास्ता अलग करता था। उस सुबह गांव में खबर फैली की मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग उस रास्ते को खोद रहे हैं। हिंदुओं ने इसे दुर्गा पूजा में खलल की साजिश बताया। बात चिंगारी की तरह फैली और देखते ही देखते गांव में हिंसा भड़क उठी। पुलिस ने हालात काबू करने के लिए लाठी चार्ज किया। कुछ मुस्लिम युवकों को हिरासत में लिया। मगर शाम होते होते गुस्साई भीड़ ने थाने पर ही हमला बोल दिया। हिंदुओं की दुकानों में लूटपाट हुई। गाड़ियों में आग लगा दी गई। हालात इतने बेकाबू हुए कि रैपिड एक्शन फोर्स और सेना बुलानी पड़ी फिर भी हिंसा की आग चार दिनों तक ठंडी नहीं हुई। इस आग ने 23 घरों को राख किया। 250 दुकाने लुट गई और पांच मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया। ये तब हुआ जब सूबे में लेफ्ट की सरकार थी। 2011 में सरकार को बदली मगर क्या हालात बदले? जवाब है नहीं। पश्चिम बंगाल में न ये हुआ पहला वाक्या था और न आखिरी। 1946 में कलकत्ता की गलियों में बहते खून से लेकर अप्रैल 2025 में मुर्शीदाबाद में हुए दंगे। उसमें जले घर और विस्थापित लोगों की अनगिनत कहानियां हैं। आज आपको मातृभूमि के इस स्पेशल एपिसोड में 16 अगस्त 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे की कहानी बताएंगे। आइए मिलकर तर्कों, सबूतों और तथ्यों के साथ मिलकर कलकत्ता कीलिंग की कहानी के पन्नों को खोलते हैं जो आजतक आपसे छुपाकर रखे गए थे। वो 1946 का दौर था। कैबिनेट मिशन की योजना को लेकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच विवाद हो गया था। जिसके बाद जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को पूरे देश में डायरेक्ट एक्शन डे मनाने का ऐलान कर दिया था। भारत के मुसलमानों को जिन्ना ने नारा दिया था कि लड़कर लेंगे पाकिस्तान, मर कर लेंगे पाकिस्तान। जिन्ना ने जो खूने इरादे जगाए थे उसे हकीकत में कलकत्ता में अंजाम दिया गया। डायरेक्ट एक्शन डे, जिसे 1946 की ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। 

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रमजान महीने का 17वां दिन और… 
साल 1946, देश आजादी पाने के लिए बैचेन था। द्वीतीय विश्व युद्ध की आग पूरी तरह बुझी नहीं थी। ब्रिटेन की सरकार ये फैसला ले चुकी थी कि अंग्रेज ये देश छोड़कर चले जाएंगे। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में अपने स्वार्थ के लिए एक धड़े ने भारत को बांटने का दावा पेश कर दिया था। उनकी मांग थी पश्चिम के पेशावर से लेकर पंजाब के अमृतसर और कोलकाता समेत एक अलग राष्ट्र जो सिर्फ मुसलमानो के लिए बनेगा और जिसका नाम होगा पाकिस्तान। डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक देश, एक विधान, एक निशान और एक संविधान का नारा पूरे देश में गूंज रहा था। लेकिन मुस्लिम लीग की डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा ने पूरे देश को आग से खेलने पर मजबूर कर दिया था। जिन्ना ने कहा कि अगर समय पर बंगाल का सही फैसला नहीं मिला तो…हमें अपनी ताकत दिखानी पड़ेगी। भारत से हमें कोई लेना-देना नहीं। हमें तो पाकिस्तान चाहिए, स्वाधीन पाकिस्तान चाहे भारत को स्वाधीनता मिले या न मिले। उन दिनों रमजान का महीना चल रहा था और 16 अगस्त 1946 को रमजान महीने का 17वां दिन था। इसी को ध्यान में रखते हुए सोहरावर्दी और मुस्लीम लीग के नेताओं ने मुस्लीम इलाके के हर घर में एक पर्चा पहुंचाया। इस पर्चे में क्या लिखा हुआ था इसका वर्णन पंजाब हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस जीडी खोसला ने अपनी किताब देश विभाजन का खूनी इतिहास में किया है। जस्टिस जीडी खोसला को 1948 में नेहरू सरकार ने विभाजन के पहले और बाद में हुए दंगों की जांच सौंपी थी। ये वही जस्टिस खोसला हैं जिन्होंने शिमला के कोर्ट में नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा सुनाई थी। 
कलकत्ता के मुसलमानों को बांटा गया कौन सा पर्चा 
जस्टिस खोसला ने अपनी किताब के पेज 59 में बताया कि कलकत्ता के मुसलमानों के बीच जो पर्चा बांटा गया था उसका शीर्षक जिहाद के लिए अल्लाह से दुआ था। इस पर्चे में लिखा था कि मुसलमान भाइयों तुम्हें ये याद रखना चाहिए कि रमजान के पाक महीने में ही आसमान से कुरान उतरी थी। रमजान के 17वें दिन अल्लाह की नेमत से हमारे पैंगबर ने अपने 313 मुसलमान साथियों के साथ बदर की लड़ाई में बहुत सारे काफिरों पर पहली जीत हासिल की थी। ये जेहाद का आगाज था। ये वही रमजान का महीना है जिसमें सिर्फ 10 हजार मुसलमानों ने मक्का पर फतह पाई और इस तरह से इस्लाम की हुकूमत की नींव डाली थी। लेकिन ये बदकिस्मती है कि हिंदुस्तान में हम 10 करोड़ मुसलमान होने के बाद भी हिंदुओं और अंग्रेजों के गुलाम बन गये हैं। हम लोग अल्लाह के नाम पर उसी रमजान महीने में जेहाद शुरू करने जा रहे हैं। दुआ कीजिए कि हम मजबूत बनें और काफिरों पर जीत हासिल करें। अल्लाह की मजी से हम हिंदुस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी मुल्क कायम करने में कामयाब होंगे। इस हिंदुस्तान में मुसलमानों के सर पर ताज था। मुसलमानों ! सोचोफिर आज हम काफिरों के गुलाम क्यों हैं? काफिरों से मुहब्बत करने का अंजाम अच्छा नहीं होता। ऐ काफिर ! घमंड मत कर, तुम्हारी सजा का वक्त करीब आ गया है। कत्लेआम होगा, हम हाथ में तलवार लेकर फख के साथ तुम पर जीत हासिल करेंगे। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ कयामत का दिन होगा। 

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पाकिस्तान बनाने के लिए आपके पास अगले 24 घंटे हैं 
मुस्लीम लीग के नेताओं ने बहुत ही शातिर तरीके से डायरेक्ट एक्शन डे को बदर की जंग, जिहाद और काफिरों से जोड़ दिया था। बस फिर क्या था, लाखों मुसलमानों की भीड़ कलकत्ता के ऑक्टरलोनी स्मारक के मैदान पर जमा हो गई। इस भीड़ के हाथों में लंबी-लंबी लाठियां, कटार, चाकू थे। कुछ हाथों में बंदूके भी थी। भीड़ में शामिल ज्यादातर लोगों ने रोजे रखे हुए थे। इस उमस भरी दोपहर में भूखे प्यासे लोगों से सोहरावर्दी ने उस दिन भाषण देते हुए कहा कि जाइये आपके इफ्तार का वक्त हो रहा है। मैं ब्रिटिश फौज और पुलिस पर लगाम लगाने की हैसियत रखता हूं। पाकिस्तान बनाने के लिए आपके पास अगले 24 घंटे हैं। इस दौरान जो चाहो वो कर लो। गोली और बम की आवाज से कांप उठी थी भारत मां की धरती। पूर्वी बंगाल का नोआखाली जिला। मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक कत्लेआम हुआ था। कलकत्ता में 72 घंटों के भीतर 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे। 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे। इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है। 
ऐसा लगा मानों तैमूर लंग और नादिरशाह की फौज पूरे कलकत्ता में खून का दरिया बहाने निकली 
मुसलमानों की भीड़ जहां से गुजरी वहां उसने मौत के निशान छोड़ दिए। ऐसा लग रहा था कि तैमूर लंग और नादिरशाह की फौज पूरे कलकत्ता में खून का दरिया बहाने निकली हो। ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ में ज़िंदा बच गए रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों के सामने मुस्लिम भीड़ की क्रूरता को देखा था। उनकी उम्र 92 साल है। इस हिसाब से उस समय वो युवावस्था में थे और उनकी उम्र 24 साल के आसपास रही होगी। उन्होंने बताया है कि कैसे राजा बाजार के बीफ की दुकानों पर हिन्दू महिलाओं की नग्न लाशें हुक से लटका कर रखी गई थीं। उन्होंने बताया कि विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ने वाली कई हिन्दू छात्राओं का बलात्कार किया गया, उनकी हत्याएँ हुईं और उनकी लाशों को हॉस्टल की खिड़कियों से लटका दिया गया। रबीन्द्रनाथ दत्ता ने अपनी आँखों से हिन्दुओं की क्षत-विक्षत लाशें देखी हैं। जमीन पर खून की धार थी, जो उनके पाँव के नीचे से भी बह कर जा रही थी। इनमें से कई महिलाएँ भी थीं, जिनकी लाशों से उनके स्तन गायब थे। उनके प्राइवेट पार्ट्स पर काले रंग के निशान थे। 
मौतों का आँकड़ा 
16 अगस्त से शुरू हुआ नरसंहार 20 अगस्त तक चलता रहा। उसके बाद भी हिंसा की घटनाएँ होती रहीं। कलकत्ता छोड़ने को मजबूर हुए हिन्दुओं का पलायन शुरू हो गया। लेकिन सवाल यह है कि मुस्लिम लीग के इस नरसंहार में कितने हिन्दू मौत के घाट उतार दिए गए? कलकत्ता में ही 72 घंटों के भीतर लगभग 6,000 हिन्दू मार दिए गए। मजहबी दंगाइयों के शिकार हुए लगभग 20,000 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए और लगभग 100,000 लोगों को अपना सबकुछ छोड़कर जाना पड़ा।

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