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Shaurya Path: US Tariffs, India-Bangladesh और India-China से जुड़े मुद्दों पर Robinder Sachdev से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने अमेरिका की ओर से शुरू की गयी टैरिफ वार, भारत की ओर से बांग्लादेश से वापस ली गयी पारगमन सुविधा और चीन की ओर से भारत के साथ संबंधी सुधारने के लिए की जा रही पहलों से जुड़े मुद्दों पर विदेश मामलों के जानेमाने विशेषज्ञ श्री रोबिन्दर सचदेव जी से बात की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. अमेरिका की ओर से अनेक देशों पर लगाये गये जवाबी शुल्क स्थगित कर दिये गये हैं जबकि चीन पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया है। यह दर्शा रहा है कि टैरिफ वार सीधे सीधे अमेरिका और चीन के बीच लड़ी जायेगी लेकिन इसका भारत तथा अन्य देशों पर कितना असर होगा?
उत्तर- आपने सही कहा कि अमेरिका और चीन के बीच लड़ी जा रही टैरिफ वार का अन्य देशों पर असर पड़ेगा लेकिन फिलहाल राहत की बात यह है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ 90 दिन के लिए टाल दिये हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक व्यापार अनिश्चितता के नकारात्मक व्यापक आर्थिक प्रभाव केवल अमेरिका और चीन तक ही सीमित नहीं रहेंगे बल्कि अन्य अर्थव्यवस्थाओं, खासकर सबसे कम विकसित देशों तक भी इनका असर देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा कि विश्व व्यापार में अमेरिका और चीन के बीच होने वाले व्यापार की हिस्सेदारी करीब तीन प्रतिशत है। इससे पता चलता है कि दोनों देशों के व्यापार संबंधों में किसी भी तरह का तनाव वैश्विक व्यापार के लिए बड़े नुकसान का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच यह ‘जैसा को तैसा’ वाले नजरिये का व्यापक निहितार्थ है और यह वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा कि अगर आगे भी यह तनाव बढ़ता है तो कई तरह के जोखिम पैदा हो सकते हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि हालांकि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव से दोनों देशों में भारतीय निर्यातकों के लिए अवसर पैदा हो सकते हैं।

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प्रश्न-2. भारत ने बांग्लादेश के लिए पारगमन सुविधा वापस ले ली है इसका क्या असर होगा?
उत्तर- भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ जो कड़ा रुख अपनाया है वह समय की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय संबंधों में बढ़ते तनाव के बीच भारत ने अपने बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से पश्चिम एशिया, यूरोप और अन्य देशों को निर्यात के लिए बांग्लादेश को दी गई पारगमन (ट्रांसशिपमेंट) सुविधा वापस ले ली है। उन्होंने कहा कि ‘ट्रांसशिपमेंट’ का मतलब एक देश से माल दूसरे देश ले जाने के लिए किसी तीसरे देश के बंदरगाह, हवाई अड्डे या परिवहन मार्ग का अस्थायी उपयोग करना होता है। उन्होंने कहा कि भारत का यह कदम बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस द्वारा चीन में दिए गए विवादास्पद बयान के कुछ दिनों बाद उठाया गया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत के पूर्वोत्तर राज्य, जिनकी बांग्लादेश के साथ लगभग 1,600 किलोमीटर की सीमा लगती है, चारों ओर से जमीन से घिरे हुए हैं तथा इनके पास उनके देश के अलावा महासागर तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत ने नेपाल और भूटान को बांग्लादेशी निर्यात से छूट दी है, क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के तहत चारों ओर से जमीन से घिरे देशों के लिए व्यापार सुविधा अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि भारत और बांग्लादेश ने 2020 में पारगमन व्यवस्था को लेकर एक समझौता किया था और 2022 में बांग्लादेशी निर्यात के लिए इस सुविधा को औपचारिक रूप से बढ़ा दिया गया था। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश पश्चिम एशिया, यूरोप और कई अन्य देशों को अपना निर्यात भेजने के लिए कई भारतीय बंदरगाहों और हवाई अड्डों का उपयोग करता रहा है।
उन्होंने कहा कि मोहम्मद यूनुस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार अप्रैल को बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान बातचीत की थी। उन्होंने कहा कि भारतीय पक्ष हालांकि यूनुस और मोदी के बीच बैठक के बारे में ढाका की ओर से जारी बयान, विशेषकर अल्पसंख्यकों पर हमलों और हसीना के प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध से नाराज था। उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े लोगों ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और प्रधानमंत्री मोदी के बीच बैंकॉक में हुई बैठक के संबंध में बांग्लादेश की ओर से जारी बयान को ‘‘शरारतपूर्ण और राजनीति से प्रेरित’’ बताया था। उन्होंने कहा कि यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने एक ‘फेसबुक’ पोस्ट में कहा था कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बैंकॉक में हुई बैठक में मोदी के समक्ष हसीना के प्रत्यर्पण के लिए बांग्लादेश के अनुरोध को उठाया और ‘‘प्रतिक्रिया नकारात्मक नहीं थी।’’ उन्होंने कहा कि सूत्रों ने बैठक पर बांग्लादेश के आधिकारिक बयान और आलम के ‘फेसबुक’ पोस्ट को लेकर कहा था कि यूनुस और पिछली बांग्लादेश सरकार के साथ संबंधों के बारे में भारतीय प्रधानमंत्री की टिप्पणियों का वर्णन ‘‘गलत’’ था। उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले साल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा हसीना के प्रत्यर्पण के लिए किए गए अनुरोध पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को विभिन्न देशों को निर्यात के लिए दी गई पारगमन सुविधा वापस लेने का केंद्र का फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत सरकार की पूर्वोत्तर क्षेत्र की सुरक्षा प्राथमिकता को दर्शाता है। उन्होंने सरकार के इस निर्णय को देश की “रणनीतिक और आर्थिक प्राथमिकताओं” की रक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का प्रतीक भी बताया।
प्रश्न-3. अमेरिका से बढ़ते तनाव के बीच चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पड़ोसी देशों के साथ चीन के संबंध सुधारने का संकल्प लिया है। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- चीन अभी भारत का साथ चाह रहा है लेकिन कल को वह हमारे साथ रहेगा या नहीं इस बात की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत चीन की चिकनी चुपड़ी बातों में आने वाला नहीं है क्योंकि वह ड्रैगन की पलटी मारने की प्रवृत्ति को अच्छी तरह समझता है। उन्होंने कहा कि वैसे भी भारत कभी भी किसी देश का पिछलग्गू बन कर नहीं रहता। उन्होंने कहा कि कल तक हेकड़ी दिखाने वाले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अमेरिका की ओर से भारी-भरकम शुल्क लगाए जाने के बाद ही पड़ोसी देशों के साथ रणनीतिक रिश्तों को मजबूत बनाने का संकल्प क्यों लिया? क्या उन्हें पहले पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की याद नहीं आई? उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ संबंध तनावपूर्ण होने के बीच चीन ने हाल ही में भारत के साथ सीमा पर तनाव कम किया है तथा जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अन्य पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिश की है, ताकि व्यापार और रणनीतिक मोर्चों पर ट्रंप के कार्यकाल में आने वाले कठिन समय का सामना किया जा सके। उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय से शिथिल भारत-चीन संबंधों में पिछले अक्टूबर में रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से शी जिनपिंग की मुलाकात के बाद सुधार के संकेत मिले थे। तब से, दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य बनाने के लिए कई उच्च स्तरीय बैठकें की हैं।

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