मौसम विभाग का अनुमान है कि 2025 में भारत में सामान्य से अधिक मानसूनी बारिश हो सकती है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने मौसमी वर्षा के दीर्घावधि औसत के 105% रहने का अनुमान लगाया है। अधिकारियों ने मंगलवार को घोषणा की कि यह अनुमान 5% के मॉडल त्रुटि मार्जिन के साथ है। दक्षिण-पश्चिम मानसून आमतौर पर 1 जून के आसपास केरल में आगे बढ़ना शुरू करता है और सितंबर के मध्य तक वापस चला जाता है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने कहा कि अनुमानित औसत से अधिक बारिश कृषि क्षेत्र को बहुत ज़रूरी बढ़ावा दे सकती है। IMD के अनुसार, इस वर्ष के पूर्वानुमान से पता चलता है कि देश के अधिकांश हिस्सों को अनुकूल वर्षा की स्थिति से लाभ होने की संभावना है, कुछ क्षेत्रों को छोड़कर। चार महीने के मानसून के मौसम के दौरान लद्दाख, पूर्वोत्तर और तमिलनाडु में सामान्य से कम बारिश होने की उम्मीद है। IMD सामान्य वर्षा को 50 साल के औसत 87 सेमी (लगभग 35 इंच) के 96% और 104% के बीच परिभाषित करता है। इस सीमा से ऊपर की कोई भी मात्रा “सामान्य से ऊपर” मानी जाती है।
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मानसून में देश में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मंगलवार को कहा कि इस बार मानसून में भारत में सामान्य से अधिक बारिश होगी। आईएमडी ने मानसून के मौसम के दौरान अल नीनो की स्थिति बनने की संभावना को भी खारिज कर दिया। आईएमडी प्रमुख मृत्युंजय महापात्र ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘भारत में चार महीने (जून से सितंबर) के मानसून के मौसम में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है और कुल वर्षा 87 सेंटीमीटर के दीर्घावधि औसत का 105 प्रतिशत रहने का अनुमान है।’’ उन्होंने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में सामान्य से कम मानसूनी बारिश से जुड़ी अल-नीनो स्थितियां इस बार विकसित होने की संभावना नहीं है।
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मार्च- अप्रैल में भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं लोग
देश के कई हिस्से पहले से ही भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं और अप्रैल से जून की अवधि में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने का अनुमान है। इससे बिजली ग्रिड पर दबाव पड़ सकता है और पानी की कमी हो सकती है। मानसून भारत के कृषि क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, जो लगभग 42.3 प्रतिशत आबादी की आजीविका का आधार है और देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 18.2 प्रतिशत का योगदान देता है। कुल खेती योग्य क्षेत्र का 52 फीसदी हिस्सा वर्षा आधारित प्रणाली पर निर्भर है। यह देशभर में बिजली उत्पादन के अलावा पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण जलाशयों को फिर से भरने के लिए भी अहम है। इसलिए, मानसून के मौसम में सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान देश के लिए एक बड़ी राहत है।
परिवर्तनशीलता और अधिक बढ़ सकती है
हालांकि, सामान्य वर्षा का यह मतलब नहीं है कि पूरे देश में हर जगह एक समान बारिश होगी। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा आधारित प्रणाली की परिवर्तनशीलता और अधिक बढ़ जाती है। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के दिनों की संख्या घट रही है, जबकि भारी बारिश की घटनाएं (थोड़े समय में अधिक बारिश) बढ़ रही हैं। इससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ और कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति पैदा होती है।