राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंगोला और बोत्सवाना की राजकीय यात्रा पर जा रही हैं। इस आशय की घोषणा भारतीय विदेश मंत्रालय ने की है। देखा जाये तो राष्ट्रपति की अंगोला और बोत्सवाना की यात्रा केवल औपचारिक राजनयिक कार्यक्रम नहीं है बल्कि यह उस व्यापक दृष्टि का हिस्सा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “विकास के साथ विश्वास” की विदेश नीति बताया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रपति की यह यात्रा अफ्रीका में भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करने, चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने और भारत को “ग्लोबल साउथ” के नैसर्गिक नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम सिद्ध होगी। वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों के चलते अफ्रीकी महाद्वीप के हृदयस्थल में भारत की आवाज़ अब पहले से कहीं अधिक सशक्त होकर सुनाई दे रही है।
हम आपको बता दें कि बोत्सवाना, दक्षिणी अफ्रीका का एक लोकतांत्रिक और स्थिर देश है जोकि दुनिया के सबसे बड़े हीरा उत्पादकों में भी शामिल है। भारत ने 1966 में उसकी स्वतंत्रता के तुरंत बाद राजनयिक संबंध स्थापित किए और 1987 में गाबोरोन में अपना दूतावास खोला था। राष्ट्रपति मुर्मू की यात्रा इस पुराने संबंध को एक नए युग में प्रवेश करायेगी। वैसे भी भारत और बोत्सवाना के बीच सहयोग की जड़ें गहरी हैं। हीरा उद्योग में भारतीय कंपनियाँ जैसे KGK Diamonds, Blue Star और Shrenuj लंबे समय से सक्रिय हैं। हाल ही में दोनों देशों के बीच “इंडिया-अफ्रीका डायमंड इंस्टीट्यूट” के विस्तार और बोत्सवाना के युवाओं को प्रशिक्षित करने पर नए समझौते भी हुए हैं।
रक्षा सहयोग दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण आयाम है। भारतीय सेना पहले से ही बोत्सवाना डिफेंस फोर्स को प्रशिक्षण देती है और अब यह साझेदारी उच्चस्तरीय सुरक्षा सहयोग में रूपांतरित हो रही है। यह चीन की उस नीति के समानांतर एक जवाब है जिसके तहत वह अफ्रीका में सैन्य ढाँचे खड़े कर रहा है। इसके अलावा, स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल क्षेत्र में भी भारत ने सहायता के कई नए प्रस्ताव रखे हैं— जैसे ई-गवर्नेंस, डिजिटल हेल्थ और फार्मास्युटिकल्स में सहयोग। कोविड-19 के दौरान भारत द्वारा दी गई वैक्सीन और चिकित्सा सहायता ने बोत्सवाना में भारत के प्रति गहरा विश्वास पैदा किया था।
जहां तक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की अंगोला यात्रा की बात है तो आपको बता दें कि राष्ट्रपति पहले अंगोला जाएंगी और उसके बाद बोत्सवाना का दौरा करेंगी। अंगोला अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है और अटलांटिक क्षेत्र का रणनीतिक केंद्र है। अंगोला के राष्ट्रपति जोआओ लौरेन्सो और मुर्मू के बीच होने वाली वार्ताओं में दोनों देशों के बीच ऊर्जा, रक्षा, समुद्री सुरक्षा, कृषि और कौशल विकास के क्षेत्रों में सहयोग के नये अध्याय खुलने की उम्मीद है। हम आपको बता दें कि भारत और अंगोला के संबंध ऐतिहासिक हैं। भारत ने अंगोला के स्वतंत्रता संग्राम में समर्थन दिया था और 1985 में राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। आज भारत अंगोला का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है— जहां से भारत को भारी मात्रा में कच्चा तेल प्राप्त होता है।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि प्रधानमंत्री मोदी और अंगोला के राष्ट्रपति जोआओ लौरेन्सो की मई 2025 की वार्ता में जो नए समझौते हुए थे उन्होंने दोनों देशों के बीच संबंधों को निर्णायक गति दी है। $100 मिलियन की लाइन ऑफ क्रेडिट के तहत भारत अंगोला की नौसेना को नौकाएँ, इंटरसेप्टर क्राफ्ट और स्लिपवे निर्माण में सहायता दे रहा है। यह पहल हिंद महासागर और अटलांटिक के बीच भारत की समुद्री कूटनीति का विस्तार है। यह एक ऐसी नीति है जो भारत को ‘ब्लू वॉटर नेवी’ के रूप में मजबूती देती है। साथ ही ऊर्जा पर निर्भर यह संबंध भारत को तेल बाजार में स्थिरता प्रदान करते हैं और पश्चिम एशिया की अस्थिरता के विकल्प के रूप में अफ्रीका को एक भरोसेमंद स्रोत बनाते हैं। इसके साथ ही भारतीय कंपनियों— ONGC विदेश, इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने वहां रेल, तेल शोधन और कृषि क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
देखा जाये तो चीन ने पिछले दो दशकों में अफ्रीका में बड़े पैमाने पर निवेश और कर्ज आधारित परियोजनाओं के माध्यम से प्रभाव जमाया है। परंतु भारत का मॉडल अलग है— वह साझेदारी को ‘समानता और आत्मनिर्भरता’ के आधार पर परिभाषित करता है। राष्ट्रपति मुर्मू की यात्राएँ भारत की “मानव-केंद्रित कूटनीति” की मिसाल हैं जहां फोकस केवल परियोजनाओं पर नहीं बल्कि लोगों, शिक्षा और कौशल विकास पर है। भारत द्वारा संचालित ITEC और ICCR कार्यक्रमों के तहत बोत्सवाना और अंगोला के हजारों युवाओं को प्रशिक्षण मिला है, जिससे दोनों देशों में भारतीय प्रभाव स्वाभाविक रूप से गहराया है।
यह वही क्षेत्र है जहां चीन अक्सर असफल रहता है क्योंकि उसकी परियोजनाएँ स्थानीय रोजगार सृजन या तकनीकी स्थानांतरण में उतनी प्रभावी नहीं हैं। यही कारण है कि अफ्रीका अब भारत की “विकास साझेदारी” को अधिक विश्वसनीय विकल्प के रूप में देख रहा है।
देखा जाये तो राष्ट्रपति मुर्मू की यात्रा के प्रतीकात्मक अर्थ गहरे हैं। अफ्रीका के इस दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में भारत की सक्रियता न केवल आर्थिक बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को संतुलित करती है। भारत का ध्यान अब “हिंद महासागर से अटलांटिक महासागर” तक की समुद्री श्रृंखला पर है— जहाँ अफ्रीका, भारत की ब्लू वॉटर नेवी नीति का स्वाभाविक विस्तार बन रहा है। साथ ही, अफ्रीका के लोकतांत्रिक देशों— बोत्सवाना और अंगोला के साथ संबंध भारत के “लोकतांत्रिक साझेदारों के समूह” को भी मजबूत करते हैं। यह पहल पश्चिमी देशों के साथ भारत की ‘ग्लोबल साउथ’ रणनीति को सशक्त बनाती है।
बहरहाल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की बोत्सवाना और अंगोला की यात्राएँ केवल औपचारिक कूटनीतिक दौरे नहीं हैं ये भारत की “अफ्रीका नीति 2.0” की परिपक्वता का परिचायक हैं। हीरे से लेकर तेल तक, शिक्षा से लेकर समुद्री सुरक्षा तक, भारत और अफ्रीका के बीच साझेदारी अब विकास और रणनीति का संगम बन चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का यह अफ्रीकी अभियान एक दूरगामी मास्टर स्ट्रोक है जो न केवल चीन की पकड़ को कमजोर करता है, बल्कि भारत को “विश्वसनीय और समान भागीदार” के रूप में स्थापित करता है। अफ्रीका अब भारत की विदेश नीति का परिधि नहीं, बल्कि केंद्र बन चुका है जहाँ से एक नए वैश्विक संतुलन की शुरुआत दिखाई दे रही है।