जोधपुर जेल में बंद जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो ने लेह में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने के लिए सुरक्षा बलों को ज़िम्मेदार ठहराया है। साथ ही, उन्होंने उन आरोपों का कड़ा खंडन किया है जिनमें उनके पति के पाकिस्तान से ‘संबंध’ होने या संगठनों के ज़रिए धन का गबन करने की बात कही गई है।
अंगमो ने कहा कि वांगचुक वर्षों से ‘सर्वाधिक गांधीवादी तरीके’ से विरोध कर रहे थे, लेकिन 24 सितंबर को केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की कार्रवाई के कारण ‘स्थिति बिगड़ गई’, जिसके परिणामस्वरूप चार लोगों की मौत हुई। हालांकि, पुलिस का कहना है कि भीड़ के हिंसक होने और स्थानीय भाजपा कार्यालय में आग लगाने के बाद उन्होंने आत्मरक्षा में कार्रवाई की थी।
पाकिस्तान संबंध पर क्या बोलीं वांगचुक की पत्नी
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव लर्निंग की सह-संस्थापक अंगमो ने बताया कि वांगचुक को शुक्रवार को कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर जोधपुर जेल भेज दिया गया, लेकिन उन्हें नज़रबंदी आदेश नहीं दिखाए गए हैं।
लद्दाख यूटी पुलिस प्रमुख एसडी सिंह जामवाल के उस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, जिसमें वांगचुक के पाकिस्तान से ‘संबंधों’ की जांच की बात कही गई थी, अंगमो ने कहा कि उनके पति की पाकिस्तान यात्रा पूरी तरह से पेशेवर और जलवायु-केंद्रित थी।
उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, ‘हमने संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में भाग लिया था, और यह जलवायु परिवर्तन पर था। हिमालय की चोटी पर स्थित ग्लेशियर यह नहीं देखेगा कि वह पाकिस्तान में बह रहा है या भारत में।’
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि वांगचुक ने कार्यक्रम में मंच पर प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी की प्रशंसा की थी, इसलिए उन्हें राष्ट्र-विरोधी बताना गलत है।
NSA लगाने को बताया गलत
वांगचुक की पत्नी ने उन पर कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाए जाने पर सवाल उठाया, जिसके तहत उन्हें बिना किसी मुकदमे के 12 महीने तक हिरासत में रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि वांगचुक निश्चित रूप से ‘किसी भी सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा नहीं’ हैं, और यह आरोप ‘बहुत गलत’ है।
अंगमो ने नेपाल और बांग्लादेश के विरोध प्रदर्शनों का हवाला देते हुए वांगचुक के बयानों को ‘भड़काऊ’ बताने के सरकारी दावों पर भी बात की। उन्होंने दावा किया कि उनके लद्दाखी शब्दों को संदर्भ से बाहर निकालकर गलत अनुवाद किया गया, और उनका आशय केवल यह था कि ‘जब सरकारें उत्तरदायी नहीं होतीं, तो क्रांति आ जाती है।’
वांगचुक लद्दाख के लिए छठी अनुसूची का दर्जा और पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर ‘सत्याग्रह’ कर रहे थे, ताकि क्षेत्र के भूमि अधिकार और आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। हिंसा की घटना के बाद वांगचुक ने नाराज़गी जताते हुए अपनी भूख हड़ताल वापस ले ली थी।