सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ट नेताओं ने सभी विपक्षियों की उपेक्षा करते हुए इस आंदोलन को औद्योगीकरण के खिलाफ करार घोषित किया और हालात तब और बिगड़े जब समीप के हल्दिया के तात्कालीन एमपी लक्ष्मण सेठ के नेतृत्व में हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी ने भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप सीपीआईएम और बीयूपीसी दोनों के समर्थकों के बीच हिंसात्मक संघर्ष की घटना घटी। सत्तारूढ़ पार्टी ने अपना पिछला प्रभुत्व जमाने की कोशिश की तो उसने नाकेबंदी को हटाने और परिस्थिति को सामान्य बनाने के बहाने अपने प्रशासन को कार्यप्रवृत्त किया।
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बंगाल के सीएम ने नंदीग्राम से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए ढाई हजार पुलिसकर्मियों के दस्ते को नंदीग्राम भेजा। 14 मार्च 2007 की रात को पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपराधियों की सहायता से राज्य पुलिस के साथ मिलकर एक जॉइंट ऑपरेशन किया और 14 लोगों पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए।
लेफ्ट ने गंवाई कुर्सी और सत्ता के शिखर पर पहुंची ममता
ममता बनर्जी के नेतृत्व में कई लेखकों, कलाकारों, कवियों और शिक्षा-शास्त्रियों ने पुलिस फायरिंग का कड़ा विरोध किया, जिससे परिस्थिति पर अन्य देशों का ध्यान आकर्षित हुआ। कलकत्ता उच्छ नायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए घटना की सीबीआई जांच का आदेश दिया। परिणामस्वरूप सरकार को अपना फैसला बदलना पड़ा। बड़े पैमाने पर चले इस आंदोलन की वजह से ममता बनर्जी जनमानस में अपनी छवि बनाने में सफल रही और फिर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज होने में भी सफल रहीं।
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