चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए त्योहार सरीखे होते हैं। इसमें बेहतर कल के लिए आम आदमी की आकांक्षाएं और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन इसी चुनावी प्रक्रिया में कुछ चिंताएं भी जुड़ी होती हैं। जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव के समय केंद्रीय चुनाव आयोग की चिंता थी कि इलेक्शन के वक्त इस्तेमाल होने वाली ईवीएम फर्स्ट लेवल चेक में बड़ी संख्या में फेल क्यों हो रही हैं? दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों ने ईवीएम मशीनों में खराबी की शिकायत की थी। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक को आरटीआई से पता चला कि ईवीएम में गड़बड़ी पहले लेवल के चेक के दौरान होने के अलावा चुनाव के वक्त प्रत्याशियों के नाम व सिंबल फिट किए जाने के दौरान भी हुई।
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चुनाव के वक्त जब ईवीएम सेट की जाती है तो उसके तीन हिस्से आपको देखने को मिलते हैं-
बैलेट यूनिट- जिस मशीन में आप वोट डालते हैं।
कंट्रोल यूनिट – जो चुनाव अधिकारी के पास होता है।
वीवीपैट – ये एक पर्ची छापने वाली मशीन होती है, जो बैलट यूनिट के पास रखी जाती है ताकि आप ये वेरीफाई कर सकें कि आपने जिसको वोट दिया आपका वोट उसी को गया है।
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फर्स्ट लेवल चेक के दौरान क्या हुआ?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा प्राप्त दस्तावेजों के एक सेट से पता चला है कि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रथम-स्तरीय जांच के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के हिस्सों के विफल होने की अपेक्षाकृत उच्च दर पर चुनाव आयोग के भीतर चिंताएं थीं। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि वीवीपीएटी और सीयू के टूटने की अपेक्षाकृत उच्च दर (आमतौर पर ईसी के पत्राचार और नोटेशन में अस्वीकृति के रूप में संदर्भित) की रिपोर्टें लगातार आ रही हैं। एफएलसी प्रक्रिया के दौरान राज्यों में और यहां तक कि तब भी जारी रहा जब उम्मीदवारों के नाम और उनके प्रतीकों को मतदान की तारीखों के करीब मशीनों में डाला जा रहा था।
किन राज्यों ने उठाए सवाल
ईवीएम खराब होने पर क्या होता है?
इन ईवीएम को भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाते हैं। पहले लेवल का चेक चुनाव से छह महीने पहले जिला निर्वाचन अधिकारी की मौजूदगी में इंजीनियर करते हैं। इनमें ईवीएम के किसी भी पार्ट में गड़बड़ी निकलती है तो चुनाव आयोग उस मशीन के साथ रिजेक्शन का नोट लगाकर इन्हें बनाने वाली कंपनियों को वापस भेज देता है।