अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के एक बरस बीत चुके हैं। तालिबान के काबुल पर कब्जे के साथ ही भारत के निवेश को लेकर तरह-तरह की चिताएं सामने आती रहीं। वहीं दूसरी तरफ तालिबान के हुक्मरानों की तरफ से भी भारत से प्रोजेक्ट फिर से शुरू करने की बात भी कही जाती रही। अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता हासिल कर लेने के बाद भी भारत ने तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है। इसके बावजूद तालिबान ने भारत को निवेश का न्यौता दिया है। तालिबान निवेश की गुहार लगा रहा है। तालिबान के हुक्मरानों की तरफ से भी भारत से प्रोजेक्ट फिर से शुरू करने की बात भी कही जाती रही। भारत ने पिछले दो दशक में अफगानिस्तान में 22 हजार करोड़ से ज्यादा का निवेश किया है। तमाम परियोजनाओं में पैसा लगाया। तालिबान ने मदद की गुहार लगाते हुए भारत से कहा है कि वो निवेश करे और नई इंफ्रास्ट्रक्चर की परियोजनाओं को शुरू करे। तालिबान का ये फैसला चौंकाने वाला है। जिसके पीछे की वजह है कि भारत के तालिबान के साथ अभी तक कोई औपचारिक रिश्ते नहीं हैं।
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अफगानिस्तान में भारत और चीन के बीच नया बवाल शुरू हो गया है। अफगानिस्तान प्राकृतिक संसाधनों का भंडार है। तालिबान चाहता है कि भारत अफगानिस्तान में आए। लेकिन भारत के आने से पहले चीन ने अफगानिस्तान में एक बड़ा प्रोजेक्ट हथिया लिया है। चीन ने अफगानिस्तान में तेल खनन का एक बड़ा ठेका हथिया लिया है। ये सौदा 25 साल की अवधि के लिए हुआ है। चीन ने इसे दोनों देशों के लिए एक अहम प्रोजेक्ट बताया है। दोनों देशों ने उत्तरी अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए अपने पहले अंतरराष्ट्रीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ये पहला सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
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अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू और तालिबान के उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की उपस्थिति में काबुल में चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन की एक सहायक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। आपको बता दें कि कुछ वजहों के कारण भारत अफगानिस्तान में जाने से हिचक रहा है। भारत तालिबान के साथ किसी परियोजना पर काम करेगा या नहीं अभी कहना मुश्किल है। भारत के तालिबान के साथ कभी भी औपचारिक रिश्ते नहीं रहे हैं। ऐसे में अगर भारत अफगानिस्तान में इन परियोजनाओं को शुरू करता है तो ये विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव होगा।