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रोके रूसी हथियार, भारत करना क्या चाहता है?

भारत और रूस की दोस्ती की मिसल हर जगह दी जाती है। एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा से दोनों देशों ने कदम उठाए हैं, फिर चाहे कैसी भी रणनीतिक स्थिति रही हो। ऐसे में क्या दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। ऐसे कुछ दावे किए जा रहे हैं। एक आंकड़े के आने के बाद भारत और रूस के संबंधों को लेकर तरह तरह के सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि क्या दोनों के संबंधों में कोई खटास आ गई है? भारत ने रूस से हथियार खरीदना क्यों कम कर दिया है। दरअसल, भारत के हथियार खरीद से जुड़ा एक आंकड़ा सामने आया है। जिसके अनुसार भारत ने साल 2020-2024 के बीच दुनियाभर में बिके हथियारों का 8.3 % अकेले खरीदा है। ये भारत को दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बनाती है। इस सूची में भारत से ऊपर केवल यूक्रेन है जो पिछले तीन सालों से रूस के साथ युद्ध में उलझा है। इसी समय भारत का रूस के साथ हथियारों की खरीद कम हो गई है। 

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भारत का रूस से हथियारों का आयात 2000 से 2019 के बीच 72 % था। यानी कुल खरीदे गए हथियार का 72 प्रतिशत रूस से भारत खरीदता था। लेकिन ये आंकड़ा 2020 से 2024 के बीच घटकर 36 % हो गया है। मौजूदा वक्त की बात करे तो भारत के हथियार आयात का 64 प्रतिशत स्वदेशी और पश्चिमी देशों को मिलाकर होता है। अब इसमें आई बड़ी कमी के पीछे क्या कारण है ये जान लेते हैं। पहला कारण भारत की मेक इन इंडिया पॉलिसी है, जो समय के साथ आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य है और उसके तहत मौजूदा समय में हथियारों की खरीद स्वदेशी कंपनियों से ही की जा रही है। जिसमें एचएएल और डीआरडीओ का बड़ा हाथ है। ये सभी हथियारों के लिए भारत की निर्भरता को कम कर रही है। यहां तक की भारत में बनी आकाश एयर डिफेंस प्रणाली पिनाका मिसाइल और एलसीए तेजस जैसे स्वदेशी हथियारों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी डिमांड को भी साबित किया है और भारत तो इनके निर्माण के निर्यात को बढ़ाने की भी प्लानिंग कर रहा है। 

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रूस से हथियारों के आयात में आई कमी के पीछे एक और मुख्य कारण रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से स्पलाई चेन में आई कमी है। इसके अलावा भारत की राष्ट्रहित पहले की नीति। तमाम अच्छे रिश्तों के बावजूद फैसलों को हमेशा भारत के हित को देखकर ही लेना। इसी कड़ी में जब भारत को रूस के मुकाबले किसी पश्चिमी देशों से हथियारों की अच्छी डील मिलती है तो भारत उसका चुनाव करता है। भारत और रूस के बीच के संबंधों की बात है तो इसमें कोई भी कड़वाहट नहीं है। इसका ताजा उदाहरण यही है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इस साल के विक्ट्री डे परेड में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। 

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