दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को किशोर न्याय बोर्ड में मामलों के निपटारे में देरी का आरोप लगाने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया।
मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने आईप्रोबोनो इंडिया लीगल सर्विसेज द्वारा दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी किए और राष्ट्रीय तथा दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोगों से इस मुद्दे पर जवाब तलब किया।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 सितंबर की तारीख तय की और याचिकाकर्ता से कहा है कि वह किशोर न्याय संबंधी अदालत की समिति के समक्ष भी अपना पक्ष रखें।
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा जांच के लिए निर्धारित सख्त समयसीमा का ‘‘चौंकाने वाले स्तर’’ का अनुपालन नहीं किया जा रहा, जिसके परिणामस्वरूप न्याय देने में गंभीर रूप से देरी हुई है तथा बच्चों के निष्पक्ष और शीघ्र सुनवाई के अधिकार को खतरा पहुंचा।
याचिका में कहा गया है कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 14(2) के तहत, सभी अपराधों के संबंध में जांच, बोर्ड के समक्ष बच्चे को पहली बार पेश किए जाने की तारीख से चार महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए, जिसे अधिकतम दो महीने तक बढ़ाया जा सकता है।
इसमें कहा गया कि छोटे अपराधों के लिए, यदि ऐसी जांच छह महीने के भीतर पूरी नहीं होती है, तो मामले को स्वतः ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
जनहित याचिका में आरटीआई के माध्यम से एकत्र आंकड़ों का हवाला देते हुए‘‘किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष जांच पूरी करने की बेहद कम दर’’ की ओर इशारा किया गया, जिसका आंशिक कारण यह तथ्य है कि दिल्ली में ग्यारह बोर्ड का प्रावधान है जबकि मौजूदा समय में केवल सात कार्यरत हैं।