संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएस) के संसद में पारित होने के तीन साल पूरे होने पर पूर्वोत्तर छात्र संघ (एनईएसओ) ने रविवार को पूरे क्षेत्र में इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया।
एनईएसओ के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने यहां एक बयान में कहा कि एनईएसओ के आह्वान पर सात पूर्वोत्तर राज्यों में काले झंडे और बैनर प्रदर्शित किए गए।
उन्होंने कहा कि ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू), नगालैंड स्टूडेंट्स फेडरेशन, ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन, खासी स्टूडेंट्स यूनियन, गारो स्टूडेंट्स यूनियन, ऑल मणिपुर स्टूडेंट्स यूनियन, मिजो जिरलाई पावल और त्रिपुरा स्टूडेंट्स फेडरेशन ने राज्यों में प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
इसके प्रभारी अध्यक्ष उत्पल शर्मा ने एक अन्य बयान में कहा कि असम में, जो 2019 में सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र था, एएएसयू ने विभिन्न स्थानों पर स्मारक सभाएं आयोजित कीं। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले आंदोलन के दौरान मारे गए पांच लोगों को पुष्पांजलि अर्पित की गई और मिट्टी के दीये जलाए गए।
शर्मा ने कहा, ‘‘हम संशोधित नागरिकता अधिनियम, 2019 को स्वीकार नहीं करेंगे, यह निश्चित है। यह स्वदेशी लोगों के खिलाफ है। हम अपनी लोकतांत्रिक और कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे।’’
2019 के सीएए विरोधी संघर्ष के बाद गठित एक राजनीतिक दल असम जातीय परिषद (एजेपी) और एएएसयू के पूर्व नेता लुरिनज्योति गोगोई की अध्यक्षता में गुवाहाटी में एक प्रदर्शन भी किया गया। पार्टी ने इस दिन को ‘प्रतारण दिवस’ (विश्वासघात का दिन) के रूप में चिन्हित किया।
गोगोई ने कहा, ‘‘हमें सीएए का विरोध जारी रखना होगा। सिर्फ इसलिए कि सत्ता में रहने वालों के पास संख्या बल है, वे ऐसा कानून नहीं थोप सकते, जो लोगों के खिलाफ हो।’’
सीएए में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले हिंदुओं, जैनियों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
इसे संसद के दोनों सदनों ने पारित किया था और दिसंबर 2019 में इसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी। हालांकि अभी सीएए के तहत नियम बनाए जाने बाकी हैं।