चीन और पाकिस्तान की गोद में बैठ चुके बांग्लादेश को भारत सरकार की ओर से लगातार झटके दिये जा रहे हैं। लेकिन वह सुधर नहीं रहा इसलिए अब बांग्लादेश को ऐसा झटका लगने वाला है जिससे वहां त्राहिमाम की स्थिति पैदा हो सकती है। यही नहीं, भारत के विभिन्न राज्यों से भी जिस तरह बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस उनके देश में खदेड़ा जा रहा है उससे आने वाले दिनों में यह लोग बांग्लादेश के लिए बड़ी मुसीबत बनने वाले हैं।
जहां तक बांग्लादेश को मिलने वाले नये झटके की बात है तो आपको बता दें कि भारत की ओर से गंगा जल संधि (Ganga Water Treaty) की समीक्षा किये जाने की घोषणा के बाद से ढाका की हालत खराब हो गयी है। बांग्लादेश को डर है कि भारत ने जिस तरह पाकिस्तान का पानी बंद कर दिया है कहीं उसके साथ भी वैसा ही ना कर दिया जाये। हम आपको बता दें कि वर्ष 1996 में हस्ताक्षरित यह ऐतिहासिक संधि गंगा नदी के जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग की आधारशिला रही है। लेकिन बदलते समय, जनसंख्या वृद्धि, जलवायु परिवर्तन और नदियों पर बढ़ते दबाव को देखते हुए अब यह आवश्यक हो गया है कि इस संधि की पुनः समीक्षा की जाए।
हम आपको याद दिला दें कि गंगा जल संधि भारत और बांग्लादेश के बीच 12 दिसंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच संपन्न हुई थी। इसका उद्देश्य फरक्का बैराज से गंगा के जल का निष्पक्ष वितरण करना था ताकि बांग्लादेश को सूखे के मौसम के दौरान भी पर्याप्त पानी मिल सके। यह संधि 30 वर्षों के लिए वैध है, अर्थात इसका कार्यकाल वर्ष 2026 में समाप्त हो रहा है। संधि में यह भी प्रावधान था कि यदि दोनों पक्ष चाहें, तो इसकी समीक्षा की जा सकती है।
इस संधि की समीक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ी, यदि इस विषय पर चर्चा करें तो आपको बता दें कि हाल के वर्षों में गंगा नदी में जल प्रवाह में गिरावट देखी गई है, जिसका प्रभाव निचले गंगा क्षेत्र और बंगाल की खाड़ी तक महसूस किया गया है। बांग्लादेश को सूखे के समय अपेक्षित मात्रा में जल नहीं मिल पाने की शिकायतें रही हैं। इसके अलावा, भारत और बांग्लादेश दोनों में ही जनसंख्या और कृषि क्षेत्र में वृद्धि के कारण जल की मांग कई गुना बढ़ गई है, जिससे जल बंटवारा और अधिक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। इसके साथ ही, पश्चिम बंगाल जैसे सीमावर्ती राज्य फरक्का बैराज से जल छोड़े जाने पर आपत्ति जताते रहे हैं, क्योंकि इससे राज्य के कुछ हिस्सों में जल संकट उत्पन्न होता है। इसके अलावा, 21वीं सदी में जल को अब केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संपत्ति माना जाने लगा है। इसलिए इस संधि की समीक्षा करना भारत की जल कूटनीति को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में ढालने का एक प्रयास है।
हम आपको यह भी बता दें कि गंगा जल संधि भारत-बांग्लादेश संबंधों की कूटनीतिक सफलता मानी जाती है। यह संधि वर्षों से दोनों देशों के बीच विश्वास और सहयोग का प्रतीक रही है। लेकिन अब जबकि इसकी समीक्षा की बात हो रही है, तो इसमें पारदर्शिता, तकनीकी डेटा साझा करना और साझा जल प्रबंधन तंत्र को मजबूती देना अत्यंत आवश्यक है, ताकि यह संधि दोनों देशों के हितों की रक्षा करती रहे। इसलिए गंगा जल संधि की समीक्षा का भारत का निर्णय एक आवश्यक और दूरदर्शी कदम है। यह केवल दो देशों के बीच जल बंटवारे का मामला नहीं है, बल्कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता भी जुड़ी हुई है।
असम सरकार का बड़ा फैसला
इसके अलावा, अगर बांग्लादेशी घुसपैठियों पर विभिन्न राज्यों द्वारा कसी जा रही नकेल पर चर्चा करें तो आपको बता दें कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि बांग्लादेश से घुसपैठ पर अंकुश लगाने के प्रयासों के तहत सरकार वयस्कों के लिए आधार कार्ड जारी करने के नियमों को सख्त बनाने पर विचार कर रही है। सरमा ने कहा कि आधार कार्ड जारी करने के सख्त नियमों से अवैध विदेशियों का पता लगाने और उन्हें देश से बाहर निकालने में राज्य सरकार के प्रयासों को और बढ़ावा मिलेगा। मंत्रिमंडल की एक बैठक की अध्यक्षता करने के बाद संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, ”हमने एक प्रस्ताव पर चर्चा की, जिसके तहत वयस्कों के लिए आधार कार्ड पूरी तरह से सत्यापन के बाद ही जारी किए जाएंगे। कैबिनेट जल्द ही इस संबंध में निर्णय लेगी।’’ उन्होंने कहा कि असम में करीब 100 प्रतिशत वयस्कों के पास आधार कार्ड हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अगर कोई वयस्क आधार कार्ड के लिए आवेदन करता है, तो हम व्यापक जांच करेंगे। नए नियमों के प्रभावी होने के बाद से केवल जिला आयुक्त के पास आधार कार्ड जारी करने का अधिकार होगा।’’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई अवैध आव्रजक आधार कार्ड न हासिल करे और हम उसका आसानी से पता लगा सकते हैं तथा उसे उसके देश भेज सकते हैं।’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि बाद में जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया को भी इसी प्रकार सख्त किया जाएगा, तथा ऐसे मामलों में जिलाधिकारी को प्रमाणपत्र जारी करने वाला प्राधिकारी नियुक्त किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हालांकि आधार कार्ड नागरिकता का दस्तावेज नहीं है, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है, जिसमें मतदाता सूची में नाम दर्ज कराना, बैंक में खाता खोलना, गैस कनेक्शन प्राप्त करना आदि शामिल है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम आधार कार्ड को ब्लॉक कर सकते हैं, तो हम अन्य दस्तावेज जारी करने पर भी रोक लगा सकते हैं। हमें विदेशियों के यहां वैध रूप से लंबे समय तक रहने और आधार कार्ड बनवाने से कोई समस्या नहीं है। हमारी समस्या अवैध विदेशियों से है।’’ मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘घुसपैठियों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के हमारे निरंतर प्रयासों के तहत गुरुवार रात हमने 20 और बांग्लादेशियों को निर्वासित किया।”
महाराष्ट्र सरकार का सर्कुलर
उधर, महाराष्ट्र सरकार की बात करें तो आपको बता दें कि राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण सर्कुलर जारी करते हुए यह स्पष्ट किया है कि अगर कोई प्रतिष्ठान अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को नौकरी देता है, तो उसके मालिकों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। यह आदेश राज्य के गृह विभाग द्वारा जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि ज़रूरत पड़ी तो कानून में संशोधन करके दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि दस्तावेजों की सत्यता जांचने के लिए जल्द ही एक ऑनलाइन प्रणाली लागू की जाएगी। हम आपको बता दें कि पुलिस जांच में यह पाया गया है कि बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिये बिल्डरों, छोटे-बड़े उद्योगों, व्यापारियों और अन्य व्यावसायिक संस्थानों में काम कर रहे हैं, क्योंकि वे कम मजदूरी पर काम करने को तैयार रहते हैं। सर्कुलर में चेताया गया, “ऐसे प्रतिष्ठान यह नहीं समझते कि उनकी यह लापरवाही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है।”
सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि यदि कोई सरकारी अधिकारी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऐसे घुसपैठियों को सरकारी कागजात दिलाने में मदद करता है, तो उसके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा। गृह विभाग के सर्कुलर में कहा गया है कि कोई भी बांग्लादेशी घुसपैठिया राज्य की किसी भी कल्याणकारी योजना का लाभ न उठाए और न ही किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान में उसे रोजगार दिया जाए। सभी विभागों को आदेश दिया गया है कि वे निर्माण कार्य, चालक, प्लंबर, वेटर, वेल्डर और मैकेनिक जैसे रोजगार क्षेत्रों में ऐसे घुसपैठियों की नियुक्ति न होने दें।
भारत ने बांग्लादेश पर की सख्त कार्रवाई
जहां तक भारत सरकार की ओर से बांग्लादेश की नकेल कसने की बात है तो आपको बता दें कि मोदी सरकार ने सीमा के जरिए बांग्लादेशी निर्यात पर अंकुश लगाया हुआ है और इसे लगातार बढ़ाया जा रहा है। पिछले महीने भारत ने द्विपक्षीय व्यापार में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सीमा के माध्यम से बांग्लादेश से तैयार वस्त्रों और कई अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के निर्यात पर नियंत्रण लगाने का निर्णय लिया था। अब भारत ने बांग्लादेश से जमीन मार्ग से कुछ विशिष्ट जूट उत्पादों और बुने हुए कपड़ों के आयात पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक अधिसूचना में कहा है कि आयात की अनुमति केवल महाराष्ट्र में न्हावा शेवा बंदरगाह के माध्यम से है। इन प्रतिबंधों के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में जूट उत्पाद, एकल सन का धागा, जूट का एकल धागा, बहु-मुड़ा हुआ, बुने हुए कपड़े या फ्लेक्स और जूट के बिना ब्लीच किए बुने हुए कपड़े शामिल हैं। इससे पहले, नौ अप्रैल को भारत ने नेपाल और भूटान को छोड़कर पश्चिम एशिया, यूरोप और अन्य देशों को विभिन्न वस्तुओं के निर्यात के लिए बांग्लादेश को दी गई किसी तीसरे स्थान से होते हुए कारोबार करने की सुविधा वापस ले ली थी। इन उपायों की घोषणा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस द्वारा चीन में दिए गए विवादास्पद बयानों की पृष्ठभूमि में की गई। हम आपको बता दें कि यूनुस द्वारा अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं पर हिंदू मंदिरों पर हमलों को रोकने में विफल रहने के बाद भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर पड़ा है।