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Yes Milord: हल्के में ले लिया था क्या? राष्ट्रपति द्वारा 14 सवालों की लिस्ट SC को भेजने के बाद आगे क्या संभावनाएं हो सकती हैं?

क्या सुप्रीम कोर्ट ये तय कर सकता है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किस तरह से करेंगे? क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को डेडलाइन के भीतर काम करने का आदेश दे सकता है? ये सवाल पिछले एक महीने से तैर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट वर्सेज संसद की बहस चल रही है और इस बहस में अब देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की एंट्री हो गई है। देश के नए प्रधान न्यायधीश को शपथ दिलाए 24 घंटे भी नहीं गुजरे थे कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 14 सवालों की एक लिस्ट सुप्रीम कोर्ट को भेज दी। सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला 8 अप्रैल को सुनाया गया था। जिस पर राष्ट्रपति मुर्मू ने कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए कड़े सवाल पूछे हैं। 

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राष्ट्रपति के 14 सवाल
1. अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास विधेयक आता है तो क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं? 
2. क्या राज्यपाल कैबिनेट की सलाह और मदद के लिए बाध्य हैं? 
3. क्या अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायोचित है? 
4. क्या अनुच्छेद 361 राज्यपाल के फैसलों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह रोक सकता है? 
5. संविधान में राज्यपाल के लिए समय सीमा तय नहीं है। क्या कोर्ट इसे तय कर सकता है? 6. क्या राष्ट्रपति के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है? 
7. क्या राष्ट्रपति के फैसलों पर भी अदालत समय सीमा तय कर सकती है? 
8. क्या राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से राय लेना अनिवार्य है? 
9. क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर कानून लागू होने से पहले अदालत सुनवाई कर सकती है? 
10. क्या सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का प्रयोग कर राष्ट्रपति या राज्यपाल के फैसले को बदल सकता है? 
11. क्या राज्य विधानसभा में पारित कानून, अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू किया जा सकता है? 
12. क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों को भेजना अनिवार्य है? 
13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश आदेश दे सकता है, जो संविधान या वर्तमान कानून से मेल न खाता हो ? 
14. क्या केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है? 
अनुच्छेद 143 के क्या प्रावधान हैं? 
किसी तथ्य या कानूनी मसले पर राष्ट्रपति लोकहित में सुप्रीम कोर्ट की राय ले सकते हैं। केंद्र और राज्यों से जुड़े विवादों की सुनवाई के लिए अनुच्छेद 131 में सुप्रीम कोर्ट के पास मूल क्षेत्राधिकार है। उन मामलों में भी अनुच्छेद 143 (2) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय ली जा सकती है। 
आगे क्या संभावनाएं हो सकती हैं? 
कोर्ट के नियम अनुसार तमिलनाडु मामले में केंद्र को पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। इसलिए सवालों के गुण-दोष पर गए बगैर कोर्ट रेफरेंस पर राय देने से मना कर सकता है। लेकिन रेफरेंस स्वीकार करने पर कोर्ट में केंद्र-राज्य संबंध, संघीय व्यवस्था, राज्यपाल के अधिकार और अनुच्छेद 142 के बेजा इस्तेमाल पर बहस हो सकती है। 
राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट की राय मानने को बाध्य हैं? 
संविधान के प्रावधान और कई फैसलों से यह भी साफ है कि अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय राष्ट्रपति और केंद्र सरकार पर बाध्यकारी नहीं है। 

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क्या सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के लिए बाध्य है? 
नहीं। राम मंदिर विवाद पर नरसिम्हा राव सरकार के रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के मामलों में राय देना अनुच्छेद 143 के दायरे में नहीं आता। 1993 में कावेरी जल विवाद पर भी कोर्ट ने इनकार कर दिया था। 2002 में गुजरात चुनावों के मामले में कोर्ट ने कहा था कि अपील या पुनर्विचार याचिका की बजाय रेफरेंस भेजने का विकल्प गलत है। 
क्या पहले भी इसी तरह का कोई मामला हुआ है? 
अनुच्छेद 143 का सबसे पहला अहम मामला दिल्ली लॉज एक्ट-1951 में आया। तब कोर्ट ने राय दी थी। केरल शैक्षणिक बिल 1957 पर कोर्ट ने रेफरेंस की व्याख्या करने के साथ राय दी थी। इंदौर नगर निगम मामले में 2006 में 3 जजों की बेंच ने फैसला दिया था कि नीतिगत मामलों में संसद और केंद्र के निर्णयों पर न्यायिक दखलंदाजी  नहीं होनी चाहिए। 

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