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रंग बदलने लगा अमेरिका, रूस का नाम लेकर भारत पर लगा दिया ये बड़ा आरोप

जब भारत आत्मनिर्भर बनता है तो दुनिया के कुछ ताकतवर देश बेचैन हो जाते हैं। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल भारत की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद रक्षा कंपनी आज एक अंतरराष्ट्रीय विवाद के केंद्र में है। आरोप ये है कि एचएएल ने ब्रिटेन की एक रक्षा कंपनी से मिली तकनीक को रूस को ट्रंसफर कर दिया। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये आरोप हकीकत हैं या फिर अमेरिका की घबराहट का एक नया रूप है। दरअसल, 13 मई को अमेरिका के एक प्रतिठित अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने मार्च में बताया कि, 2023 और 2024 के शिपिंग रिकॉर्ड के अनुसार, ब्रिटिश एयरोस्पेस निर्माता एचआर स्मिथ ग्रुप ने भारत को ऐसे उपकरण निर्यात किए जिन्हें रूसी हथियार प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण माना गया था। इसमें ट्रांसमीटर, कॉकपिट उपकरण और एंटेना शामिल थे। ये सभी ड्यूल यूज टेक्नोलॉजी हैं। यानी इनका इस्तेमाल सिविल एविएशन और मिलिट्री दोनों जगह किया जा सकता है। 

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दावा ये है कि एचएएल ने ये तकनीक रूस को ट्रांसफर कर दी। यहीं से विवाद शुरू होता है। एचएएल ने इन आरोपों को पूरी तरह से गलत, बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण करार दिया। कंपनी का कहना है कि ब्रिटेन से मंगाए गए उपकरण केवल भारत के घरेलू डिफेंस के उपयोग के लिए थे। कोई भी टेक्नोलाजी न रूस और न ही किसी अन्य देश को ट्रांसफर की गई है। एचएएल ने ये भी कहा कि सभी इंटरनेशनल डिफेंस ट्रेड रूल और एक्सपोर्ट कंट्रोल गाइडलाइंस का पालन करती है। न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) की एक रिपोर्ट के बाद मंत्रालय एचएएल के बचाव में आया। सरकारी सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है, और इसमें राजनीतिक आख्यान के अनुरूप मुद्दों को गढ़ने और तथ्यों को विकृत करने की कोशिश की गई है। एक अधिकारी ने कहा कि रिपोर्ट में उल्लिखित भारतीय इकाई ने रणनीतिक व्यापार नियंत्रण और अंतिम उपयोगकर्ता प्रतिबद्धताओं पर अपने सभी अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का ईमानदारी से पालन किया है। रणनीतिक व्यापार पर भारत का मजबूत कानूनी और नियामक ढांचा इसकी कंपनियों द्वारा विदेशी वाणिज्यिक उपक्रमों का मार्गदर्शन करना जारी रखता है।

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भारतीय कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, रूसी हथियार एजेंसी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट की सबसे बड़ी व्यापारिक साझेदार है। एच.आर. स्मिथ के वकील ने हाल ही में टाइम्स को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स का एक बयान उपलब्ध कराया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश उपकरण रूस को नहीं बेचे गए थे। लेकिन बात इतनी भर नहीं है। बड़ा सवाल ये है कि अमेरिका और पश्चिमी मीडिया को इतनी चिंता क्यों हो रही है। भारत और रूस का रक्षा सहयोग दशकों पुराना है। एचएएल ने एसयू-30 एमकेआई जैसा फाइटर जेट भारत में बनाए हैं। ये रूस की टेक्नोलॉजी पर आधारित है। एचएएल ब्रह्मोस मिसाइल प्रोग्राम का भी हिस्सा है जो भारत रूस का ज्वाइंट वेंचर है। 

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रूस की तकनीक पर भारत अब स्वदेशी बदलाव कर चुका है। लेकिन दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी मजबूत बनी हुई है। रिपोर्ट बताते हैं कि भारत और रूस मिलकर एस 500 का ज्वाइंट प्रोडक्शन भी कर सकते हैं। रूस के साथ मिलकर एस 500 के ज्वाइंट प्रोडक्शन का ऑफर मॉस्को की तरफ से दिया गया है। अमेरिक चाहता है कि भारत पूरी तरह पश्चिमी ब्लॉक में आ जाए। लेकिन भारत ने न तो रूस से दूरी बनाई न अमेरिकी दबाव में झुका है। यही बात कुछ ताकतवर देशों को खल रही है। रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर टेक्नोलॉजिकल प्रतिबंध लगाए हैं। कोई भी टेक्नोलाजी रूस तक न पहुंचे ये उनकी प्रमुख नीति है। इसके लिए वो तीसरे देशों की आपूर्ति चेन को भ निगरानी में रखते हैं। 

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