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स्वागत नहीं करोगे आप हमारा! 4 साल बाद भारत में पुतिन की ग्रैंड एंट्री, नाटो-ट्रंप तो अब Joke बनकर रह जाएंगे

चार साल बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं। अगर ऐसा होता है तो 2021 के बाद ये पहला मौका होगा जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आमने सामने वो भी भारत में मुलाकात करेंगे। रूसी राष्ट्रपति का भारत दौरा दुनिया की राजनीति में खास माना जा रहा है। दरअसल, पुतिन का ये दौरा केवल एक औपचारिक मुलाकात नहीं। ये एक बड़ा संकेत है कि भारत और रूस के रिश्ते यूक्रेन जंग और पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद मजबूत बने हुए हैं। पुतिन की भारत यात्रा इसलिए भी अहम हो जाएगी क्योंकि 2021 के बाद वो पहली बार भारत की धरती पर आ रहे हैं। इस दौरान भारत रूस शिखर सम्मेलन होगा और दोनों देश रणीनितक रूप से नए क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करना चाहते हैं। इस बार बातचीत सिर्फ परंपरागत हथियारों या व्यापार पर नहीं बल्कि हाई टेक्नोलॉजी, आर्टिक क्षेत्र और न्यूक्लियर एनर्जी जैसे क्षेत्रों पर भी होगी। 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने पुष्टि की है कि भारत रूस समिट की मेजबानी इस बार दिल्ली करेगा। यानी इस बार भारत में रूसी राष्ट्रपति का आगमन होगा। पिछली बार ये सम्मेलन मॉस्को में हुआ था। सूत्रों के अनुसार इस शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा उद्योग में सहयोग, ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी, परमाणु ऊर्जा सहयोग, आर्कटिक क्षेत्र में भारत की भूमिका का विस्तार और उच्च तकनीक क्षेत्र में संयुक्त रोडमैप पर काम जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। हाल ही में पुतिन ने खुलासा किया कि प्रधानमंत्री मोदी के अनुरोध पर रूस ने भारत को उर्वरक निर्यात बढ़ा दिया है, जिससे भारतीय खाद्य सुरक्षा मजबूत हुई है। वहीं, भारत और रूस के बीच नए परमाणु संयंत्र के दूसरे स्थान को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया भी इस शिखर सम्मेलन के दौरान पूरी हो सकती है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को कहा कि भारत-रूस शिखर सम्मेलन महत्वपूर्ण है। पिछली बार यह मॉस्को में हुआ था, अब भारत की बारी है। तारीखें आपसी सहमति से तय की जाएँगी।

अमेरिका और नाटो को आपत्ति क्यों है?

रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूस से तेल खरीदना और रक्षा साझेदारी बनाए रखना जारी रखा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूर रहे, खासकर उच्च तकनीक और सैन्य मामलों में। वहीं, नाटो देशों को चिंता है कि भारत का यह रवैया जी-7 और पश्चिमी दुनिया की रणनीति को कमजोर कर सकता है। हालाँकि, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रूप से निर्धारित करता है। रूस एक पुराना और विश्वसनीय सहयोगी है।

ऑपरेशन सिंदूर से पहले पुतिन ने भारत का समर्थन किया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच आखिरी बातचीत ऑपरेशन सिंदूर से पहले हुई थी। रूस ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई का समर्थन किया था। इस सैन्य अभियान में रूसी रक्षा प्रणालियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रूसी एस-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली और संयुक्त भारत-रूस ब्रह्मोस परियोजना ने पाकिस्तान को परास्त किया। इन प्रणालियों ने पाकिस्तान की चीन निर्मित सैन्य क्षमताओं को काफी हद तक बेअसर कर दिया।

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