पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस की रक्षा निर्माण क्षमताएं कमज़ोर नहीं पड़ी हैं क्योंकि उसे मित्र देशों से लगातार सहायता मिल रही है। हम आपको बता दें कि एक रिपोर्ट में सामने आया है कि चीन द्वारा बनाए गए इंजन छद्म कंपनियों के माध्यम से “औद्योगिक शीतलन इकाइयों” (industrial refrigeration units) के रूप में रूस भेजे जा रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों से बच निकलना है।
हम आपको बता दें कि रूसी हथियार निर्माता IEMZ Kupol ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अपने Garpiya-A1 ड्रोन का उत्पादन तीन गुना कर दिया है। 2024 में जहां 2,000 ड्रोन तैयार किए गए थे, वहीं 2025 में यह संख्या 6,000 तक पहुँचने की योजना है। हम आपको बता दें कि रिपोर्टों के मुताबिक अप्रैल 2025 तक रूस 1,500 से अधिक ड्रोन यूक्रेन में भेज कर नागरिक और सैन्य ठिकानों पर हमले करवा चुका है।
हालांकि चीन ने आधिकारिक रूप से यह स्वीकार नहीं किया है कि उसने रूस को हथियार या ड्रोन तकनीक दी है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चीनी कंपनी Beijing Xichao International Technology and Trade ने प्रतिबंधित इंजनों की आपूर्ति रूसी कंपनी Kupol को की। इन इंजनों को “शीतलक इकाइयों” के रूप में बताया गया ताकि चीन के भीतर यह आपूर्ति नियमों की दृष्टि से गलत नहीं लगे। रिपोर्ट के अनुसार, इन इंजनों को पहले रूसी छद्म कंपनी SMP-138 और फिर LIBSS के माध्यम से Kupol तक पहुँचाया गया। यह पूरा तंत्र चीन की सरकारी एयरलाइनों Sichuan Airlines और China Southern Airlines के माध्यम से संचालित हुआ, जो यह दर्शाता है कि चीन की राज्य-नियंत्रित संस्थाएं भी इस प्रक्रिया में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं।
हम आपको बता दें कि हाल ही में यूरोपीय संघ और अमेरिका ने रूस के रक्षा उद्योग को कमजोर करने के लिए कई प्रतिबंध लगाए थे, जिनमें चीनी कंपनियां जैसे Xiamen Limbach Aviation Engine Co. भी शामिल हैं। इसके बावजूद, Kupol ने Xichao जैसी नई कंपनियों के जरिए ड्रोन निर्माण के लिए आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित कर ली। इस खुलासे के बाद यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि काजा कालास ने चीन से अपील की है कि वह रूस को सैन्य सहायता देने वाले व्यापार को रोके। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डर लेयेन भी इसी पृष्ठभूमि में चीन की यात्रा पर जा रही हैं।
देखा जाये तो इस घटनाक्रम के कई गहरे भूराजनीतिक संदेश हैं। जैसे- चीन-रूस गठजोड़ एक बार फिर वैश्विक शक्ति संतुलन को चुनौती दे रहा है। साथ ही यूरोप की सुरक्षा सीधे तौर पर इस छद्म सहयोग से प्रभावित हो रही है। साथ ही चीन की दोहरी नीति और रूस-चीन सहयोग भविष्य में भारत की सामरिक स्थिति पर भी असर डाल सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि चीन द्वारा रूस को दोहरे उपयोग (dual-use) वाली तकनीक की गुप्त आपूर्ति केवल व्यापारिक समझौता नहीं, बल्कि रणनीतिक सैन्य सहयोग भी है। यह रणनीति चीन की ‘ग्रे ज़ोन वॉरफेयर’ नीति का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें वह सीधे टकराव से बचते हुए अप्रत्यक्ष सहायता से अपने रणनीतिक सहयोगी को मजबूत करता है।
हम आपको यह भी बता दें कि यूक्रेन युद्ध के चलते लगे पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस की हथियार उत्पादन क्षमता को बाधित करने का प्रयास अवश्य किया है, लेकिन वास्तविकता शुरू से ही उलट दिखाई दे रही है। रूस न केवल अपनी सैन्य उत्पादन क्षमता बनाए रखने में सफल रहा है, बल्कि उसने ईरान, उत्तर कोरिया और अब चीन जैसे देशों से गुप्त सहायता प्राप्त कर अपने रक्षा उद्योग को और मजबूत किया है। हम आपको याद दिला दें कि चीन से पहले रूस को ड्रोन्स की आपूर्ति में ईरान की अहम भूमिका रही है। ‘शहीद’ श्रेणी के कामिकाज़ी ड्रोन, जिन्हें ईरान से रूस को भेजा गया, उन्होंने यूक्रेन के ऊर्जा ढांचे को भारी नुकसान पहुँचाया था। इसके अलावा, उत्तर कोरिया द्वारा गोला-बारूद और मिसाइलों की आपूर्ति की खबरें भी पश्चिमी एजेंसियों के हवाले से सामने आ चुकी हैं। यदि यह प्रवृत्ति यूं ही जारी रही, तो रूस की सैन्य उत्पादन क्षमता न केवल बनी रहेगी, बल्कि युद्ध को और लंबा खींचने में मदद भी मिलेगी। साथ ही, यह वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने वाला एक नया उदाहरण बनेगा, जिसमें राज्य-प्रायोजित नेटवर्क प्रतिबंधों की अवहेलना करते हुए प्रत्यक्ष युद्ध को अप्रत्यक्ष सहयोग से हवा दे रहे हैं।