पश्चिम एशिया एक बार फिर तनाव के दौर से गुजर रहा है। दरअसल इजराइल ने अब सीरिया की राजधानी दमिश्क और उसके अन्य सैन्य ठिकानों पर हमले किए हैं। इन हमलों के पीछे का मकसद यह है कि ईरान समर्थित हिजबुल्लाह और ईरानी मिलिशिया की गतिविधियों को रोका जाये। हम आपको बता दें कि इजराइल लंबे समय से ईरान की सीरिया में बढ़ती सैन्य उपस्थिति को अपने लिए खतरा मानता रहा है। इजराइल के लिए ईरान-सीरिया-हिजबुल्लाह के गठबंधन को कमजोर करना उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा है। सीरिया में हिजबुल्लाह के हथियार डिपो और मिसाइल फैक्ट्रीज़ को खत्म करने के लिए इजराइल लगातार लक्षित हवाई हमले करता रहा है। इजराइल को इन हमलों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका की सहमति मिलती रही है क्योंकि वॉशिंगटन भी सीरिया में ईरान के प्रभाव को कम करने के पक्ष में है।
हम आपको बता दें कि सीरिया में ईरान ने अपने सैन्य अड्डे, हथियार डिपो और मिलिशिया तैनात कर रखी हैं। इजराइल को डर है कि ईरान इन ठिकानों के जरिए उसे घेरने की तैयारी कर रहा है। इजराइल की नीति साफ है— “ईरान को सीरिया में मजबूत नहीं होने देंगे।” इसी नीति के तहत इजराइल ईरानी अड्डों, हथियारों और सैन्य काफिलों को बार-बार निशाना बनाता है। इसके अलावा, लेबनान का आतंकी संगठन हिजबुल्लाह ईरान का करीबी है और सीरिया में उसकी मौजूदगी मजबूत हो चुकी है। इजराइल नहीं चाहता कि हिजबुल्लाह के पास एडवांस मिसाइल और हथियार पहुंचें। इसलिए वह सीरिया में उन हथियारों के डिपो और काफिलों पर हमला करता है, जिनका इस्तेमाल हिजबुल्लाह इजराइल के खिलाफ कर सकता है। साथ ही इजराइल मानता है कि सीरिया में ईरान और उसके गुट लगातार नए मिसाइल अड्डे, ड्रोन बेस और सुरंगें बना रहे हैं। अगर अभी हमला न किया गया तो भविष्य में ये ठिकाने इजराइल के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं। इसलिए इजराइल पहले ही इन ठिकानों को तबाह कर देता है।
यह भी स्पष्ट देखने में आता है कि वैसे तो अमेरिका सीधे हमले में शामिल नहीं होता, लेकिन वह ईरान के प्रभाव को रोकने के लिए इजराइल को खुली छूट देता है। इससे इजराइल और अधिक आक्रामक होता जा रहा है। इसके अलावा, कई बार इजराइल के हमले आंतरिक राजनीति से भी जुड़े होते हैं। इजराइली सरकार जनता को दिखाना चाहती है कि वह देश की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठा रही है, इसलिए ऐसे हमले किए जाते हैं। हम आपको यह भी बता दें कि इस समय इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार सहयोगी दलों के साथ छोड़ने के चलते राजनीतिक दबाव में भी है इसलिए भी हो सकता है कि यह कार्रवाई की गयी हो।
हम आपको यह भी बता दें कि इजराइल ने दमिश्क में जो शक्तिशाली हवाई हमले किए उसके पीछे यह भी दावा किया है कि ये हमले ड्रूज समुदाय की रक्षा के लिए किए जा रहे हैं, जो इस समय सीरियाई सेना के साथ सीधे संघर्ष में है। इजराइल का कहना है कि वह सीरिया में अपने बॉर्डर के पास स्थायित्व बनाए रखने और ड्रूज समुदाय की सुरक्षा के लिए सैन्य कार्रवाई कर रहा है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सीरिया की नई सरकार को “कट्टर इस्लामिक शासन” कहकर उसकी आलोचना की और इसे इजराइल के लिए खतरा बताया। इजराइल के रक्षा मंत्री और सेना ने पुष्टि की कि उनके हमलों का निशाना रक्षा मंत्रालय, राष्ट्रपति भवन के आसपास और अन्य सरकारी ठिकाने थे।
हम आपको यह भी बता दें कि इजराइल और सीरिया के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए अमेरिका ने तुरंत हस्तक्षेप किया। विदेश मंत्री मार्को रूबियो और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों से सीरिया और ड्रूज नेताओं के बीच संघर्षविराम समझौता हुआ, जिसके तहत सीरियाई सेना को सुवैदा से हटाने का निर्णय लिया गया। हालांकि यह संघर्षविराम अभी भी अनिश्चित है क्योंकि ड्रूज नेताओं के भीतर मतभेद हैं। एक पक्ष यूसुफ जरबू इस समझौते के पक्ष में है जबकि हिकमत अल-हिजरी जैसे नेता इसे अस्वीकार कर चुके हैं और अपने समर्थकों से संघर्ष जारी रखने की अपील कर रहे हैं।
दूसरी ओर, राष्ट्रपति अहमद अल-शराअ ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि सीरिया के पास दो ही विकल्प थे, पहला- इजराइल से खुली जंग लड़ना, जिसकी कीमत ड्रूज को चुकानी पड़ती। दूसरा- या फिर ड्रूज नेताओं से संयम बरतने की अपील कर शांति के रास्ते पर लौटना। उन्होंने कहा कि “हम युद्ध से नहीं डरते लेकिन हमने सीरिया की जनता की भलाई को तबाही से ऊपर रखा है।” साथ ही उन्होंने इजराइल पर आरोप लगाया कि वह सीरिया में फूट डालने और अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहा है।
हम आपको बता दें कि सुवैदा में कई दिनों से जारी झड़पों में अब तक 169 लोग मारे गए और 200 घायल हुए हैं। बिजली, पानी, इंटरनेट जैसी सुविधाएं ठप हैं। आम लोग घरों में कैद हैं। सीरिया की सरकार का कहना है कि सुवैदा से हटते हुए “गैरकानूनी गुटों” के खिलाफ अभियान पूरा कर लिया गया है। इस बीच, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इजराइल के हमलों की आलोचना करते हुए सीरिया की संप्रभुता का सम्मान करने की अपील की है। तुर्की, सऊदी अरब, यूएई, कतर और ईरान ने भी इजराइली हमलों की निंदा की। यूरोपीय संघ ने इसे “सीरिया की संप्रभुता का उल्लंघन” बताया।
हम आपको बता दें कि ड्रूज एक अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय है, जो सीरिया, लेबनान और इजराइल में फैला हुआ है। सीरिया के सुवैदा प्रांत में इनकी बहुसंख्या है। हाल ही में गोलान हाइट्स से भी कई ड्रूज नागरिकों के सीरिया में प्रवेश करने की खबरें आईं, जिन्होंने अपनी जातीय एकजुटता के लिए सीमा पार की। इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इजराइल और गोलान हाइट्स के ड्रूज लोगों को चेतावनी दी कि वे सीमा पार न करें।
देखा जाये तो इजराइल और सीरिया के बीच यह संकट केवल सीमा विवाद या आतंरिक सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे पश्चिम एशिया के भू-राजनीतिक संतुलन से जुड़ा है। सीरिया के भीतर ड्रूज अल्पसंख्यक की सुरक्षा के नाम पर दोनों देशों की सियासत तेज हो चुकी है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि भविष्य में यह टकराव किसी बड़े क्षेत्रीय युद्ध की भूमिका भी बना सकता है।
अब सीरिया का भविष्य क्या होगा यदि इस सवाल की पड़ताल करें तो हालात संकेत दे रहे हैं कि संघर्षविराम के बावजूद सीरिया पूरी तरह से स्थिर नहीं हो पाएगा क्योंकि कुर्द, तुर्क समर्थित गुट और इस्लामिक स्टेट जैसी ताकतें अभी भी सक्रिय हैं। इसके अलावा, ईरान और इजराइल के बीच शक्ति संघर्ष में सीरिया बार-बार युद्धक्षेत्र बनेगा। यह टकराव भविष्य में भी सीरियाई संप्रभुता के लिए खतरा बना रहेगा। साथ ही अरब देशों से मदद मिलने के बावजूद पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते सीरिया की अर्थव्यवस्था के जल्द सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है। निवेशक अनिश्चितता और भ्रष्टाचार सीरिया के पुनर्निर्माण को बाधित करेंगे। देखा जाये तो लाखों शरणार्थी, अंदरूनी विस्थापित और बर्बाद होती स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण सीरिया में मानवीय हालात सुधरने के संकेत नहीं दिखाई दे रहे हैं। विश्व समुदाय की प्राथमिकता यूक्रेन और गाजा जैसी जगहों पर बनी हुई है और सीरिया पीछे छूट गया है।
बहरहाल, सीरिया आज उन देशों में है जो ‘युद्ध के बाद शांति के भ्रम’ में फंसा है। इजराइल के हमले और ईरान-हिजबुल्लाह की गतिविधियां इसे बार-बार अस्थिर करती रहेंगी। देखा जाये तो सीरिया लंबे समय तक एक असंगठित, टुकड़ों में बंटी सत्ता और बाहरी शक्तियों के दखल वाला देश बना रह सकता है।