नई दिल्ली में आयोजित PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के कार्यक्रम में अफगान वाणिज्य मंत्री नूरुद्दीन अज़ीजी की मौजूदगी ने भारत–अफगानिस्तान संबंधों में एक नई गर्माहट का संकेत दिया। अफगानिस्तान ने घोषणा की है कि वह नई घरेलू उद्योग इकाइयों के लिए पाँच वर्ष तक टैक्स छूट देगा और कच्चे माल तथा मशीनरी पर सिर्फ 1% आयात शुल्क लगाएगा। यह कदम युद्ध और अस्थिरता से जूझ रहे देश में उद्योग स्थापित करने को प्रोत्साहित करने की कोशिश का हिस्सा है।
अज़ीजी ने सीमेंट, चावल, वस्त्र, दवा उद्योग, खनन और ऊर्जा को अफगानिस्तान के लिए प्राथमिक क्षेत्र बताया और कहा कि उनका देश “लचीला और अनुकूल कारोबारी माहौल” उपलब्ध करा रहा है और भारतीय कंपनियों को बड़े पैमाने पर निवेश के लिए आमंत्रित करता है। उत्पादन बढ़ने पर सरकारी प्रोत्साहन भी बढ़ाने की नीति उन्होंने विस्तार से बताई।
भारत की ओर से विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव एम. प्रकाश आनंद ने कहा कि दोनों देशों ने अपनी-अपनी एम्बेसी में ट्रेड अटैशे नियुक्त करने पर सहमति बनाई है। इसके साथ ही ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को पुनः सक्रिय किया गया है, ताकि व्यापार, निवेश और वाणिज्य को नई गति मिल सके।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण घोषणा यह रही कि काबुल–दिल्ली और काबुल–अमृतसर के लिए एयर-फ्रेट कॉरिडोर पुनः सक्रिय कर दिए गए हैं और बहुत जल्द कार्गो फ्लाइट शुरू होंगी। यह कदम इसलिए भी अहम है क्योंकि पाकिस्तान की ओर से भूमि मार्ग बार-बार बंद किया जाता है, जिससे अफगानिस्तान का भारत से व्यापार बाधित होता रहा है।
अज़ीजी ने पाकिस्तान से लगने वाली सीमा बंद होने, चाबहार मार्ग में बाधा और अमेरिका द्वारा 9.3 अरब डॉलर की अफ़गान विदेशी जमा राशि फ्रीज़ किए जाने की समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा- “अमेरिका हमारे पैसे रोकता है, पाकिस्तान रास्ता रोकता है तो हम जाएँ कहाँ? भारत ही हमारी आशा है।” उन्होंने भारत–ईरान के साथ मिलकर कम-लागत वाले व्यापार मार्ग विकसित करने की इच्छा जताई, जहाज और परिवहन कंपनियों में निवेश तक का प्रस्ताव दिया।
हम आपको बता दें कि भारत–अफगानिस्तान का मौजूदा व्यापार लगभग 1 अरब डॉलर का है जो अज़ीजी के अनुसार “संभावना से बहुत कम” है। अफगानिस्तान के ड्राई फ्रूट, कालीन, खनिज और कच्ची सामग्रियाँ भारतीय बाज़ारों में लोकप्रिय हैं, वहीं भारत चावल, चीनी, दवाइयाँ और परिधान अफगानिस्तान भेजता है।
देखा जाये तो भारत–अफगानिस्तान संबंधों का यह नया अध्याय केवल व्यापारिक साझेदारी का विस्तार नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय भू-राजनीति में भारत की सक्रिय भूमिका का भी संकेत है। अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिरता भारत के व्यापक रणनीतिक हितों से जुड़ी है— चाहे वह मध्य एशिया तक पहुँच हो, आतंकवाद की रोकथाम, या पाकिस्तान की निर्भरता को कम करके क्षेत्रीय संतुलन को नया आकार देना।
इसके साथ ही अफगानिस्तान में टैक्स छूट और 1% आयात शुल्क, भारतीय निवेश के लिए बड़ा अवसर है। पाँच वर्ष की टैक्स छूट और मात्र 1% आयात शुल्क का मतलब है कि भारतीय कंपनियों के लिए लो-कॉस्ट प्रोडक्शन हब बनने की संभावना है। साथ ही दवा उद्योग, खनन और ऊर्जा में दीर्घकालिक निवेश के द्वार खुलेंगे इससे अफगानिस्तान में रोजगार सृजन होगा जिसका क्षेत्रीय स्थिरता पर सकारात्मक असर पड़ेगा। इसके अलावा, अफगानिस्तान का बाजार छोटा जरूर है, पर उसके पास दुनिया के सबसे बड़े लिथियम और दुर्लभ खनिज भंडार हैं— जो भारत की ऊर्जा और तकनीकी जरूरतों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
इसके अलावा, हवाई व्यापार मार्ग पाकिस्तान की बाधाओं का रणनीतिक जवाब है। हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान के साथ भारत का भूमि मार्ग पाकिस्तान से होकर गुजरता है। हर बार पाकिस्तान सीमा बंद कर देता है, ट्रकों को रोक देता है या ट्रांजिट पर मनमानी करता है। इसके जवाब में भारत ने एक स्पष्ट संदेश दिया है— “जब पाकिस्तान जमीन से रास्ता रोकेगा, भारत आसमान से रास्ता तय कर लेगा।” वहीं एयर-कार्गो कॉरिडोर के लाभ को देखें तो इससे व्यापार बगैर किसी बाधा के हो सकेगा। वस्तुओं का तेज परिवहन हो सकेगा। अफगानिस्तान के कृषि उत्पादों— विशेषकर ड्राई फ्रूट और अनार की सीधे भारत के बाजारों में पहुँच हो सकेगी। भारतीय दवाइयों और मशीनरी का सुरक्षित और समयबद्ध निर्यात हो सकेगा तथा यह पाकिस्तान की अवरोधक नीति को निष्क्रिय करने वाला सामरिक कदम होगा। देखा जाये तो यह कदम वर्षों की उस कूटनीति का परिणाम है जिसमें भारत ने अफगानिस्तान के साथ संबंधों को केवल सरकार-से-सरकार तक सीमित नहीं रखा, बल्कि जन-से-जन और व्यवसाय-से-व्यवसाय के स्तर पर मजबूत किया।
इसके अलावा, अज़ीजी का विशेष आग्रह था कि भारत—ईरान के साथ मिलकर चाबहार पोर्ट को सक्रिय रखे, ताकि पाकिस्तान पर निर्भरता खत्म हो। चाबहार पोर्ट के लाभ को देखें तो इससे भारत से अफगानिस्तान और फिर मध्य एशिया तक निर्बाध पहुँच हो सकेगी। चीन–पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का नया विकल्प खड़ा होगा, क्षेत्रीय व्यापार में भारत की निर्णायक भूमिका होगी। यदि भारत, अफगानिस्तान और ईरान मिलकर चाबहार मार्ग को सुचारू रखते हैं, तो यह पूरे क्षेत्र में एक नया बहु-राष्ट्रीय आर्थिक गलियारा बन सकता है।
इसके साथ ही भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार क्षमता कम से कम 5-7 अरब डॉलर तक पहुँच सकती है। क्योंकि अफगानिस्तान को खाद्य, दवाइयों और मशीनरी की भारी जरूरत है तो वहीं भारत को ड्राई फ्रूट, कच्चे खनिज, कालीनों और प्राकृतिक संसाधनों की जरूरत है। एयर-कार्गो और चाबहार दोनों मिलकर कीमत, गति और विश्वसनीयता को संतुलित करते हैं।
इसके साथ ही भारत ने अफगान जनता के बीच वर्षों से जो भरोसा बनाया है यानि स्कूल, अस्पताल, संसद भवन, डैम इत्यादि बनवा कर, वह अब व्यापारिक सहयोग में परिवर्तित हो रहा है। देखा जाये तो एक स्थिर अफगानिस्तान दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए जरूरी है। साथ ही चरमपंथी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए भी यह अनिवार्य है।
बहरहाल, अफगानिस्तान में नए औद्योगिक प्रोत्साहन और भारत के साथ एयर-फ्रेट कॉरिडोर का पुनः सक्रिय होना यह दिखाता है कि दोनों देश अवरोधों के बावजूद आगे बढ़ने को तैयार हैं। पाकिस्तान चाहे जितना भूमि मार्ग रोक ले, भारत और अफगानिस्तान ने साबित कर दिया है कि व्यापार और मित्रता का रास्ता आसमान से भी बनाया जा सकता है। यह नया आर्थिक सहयोग न केवल द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत करेगा, बल्कि दक्षिण और मध्य एशिया की भू-राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।